विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन संकल्प का 293 वां दिन

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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नयी तालीम में एक घंटे की पाठशाला सार्थकता केंद्रित होगी_ विनोबा।

बाबा की कल्पना थी कि गांव गांव में सरकारी स्कूल अगर नहीं खुल सकें तो हमारे सुबह के समय एक घंटे के स्कूल चलें।

 नयी तालीम में एक घंटे की पाठशाला सार्थकता केंद्रित होगी_ विनोबा। बाबा की कल्पना थी कि गांव गांव में सरकारी स्कूल अगर नहीं खुल सकें तो हमारे सुबह के समय एक घंटे के स्कूल चलें। बाबा तो इसी प्रकार का एक घंटे का महाविद्यालय भी चाहते थे। वह रात को चलेगा। पंद्रह वर्ष से कम आयु के बच्चे सुबह की पाठशाला में और सोलहवें साल में लगते ही वह महाविद्यालय में जाने का अधिकारी होगा। फिर वह चाहें पाठशाला में पढ़ा हो या न पढ़ा हो।

पाठशाला में पढ़ाया जाएगा लेखन, वाचन, गणित और महाविद्यालय में श्रवण,कीर्तन, भजन आदि चलेगा। बाकी दिन भर लड़के लड़कियां सब अपने अपने माता_ पिता के काम में सहायता करेंगे। बाबा कहते थे कि छोटे बच्चों के स्कूलों में बच्चे का समय का पूर्ण उपयोग नहीं होता है। वहां पांच_ पांच घंटे सतत पढ़ाई होती है जो एक तरीके से बोझ ही है। इसलिए बाबा गांव के बच्चों के लिए एक घंटे का स्कूल सुझाते थे। वह एक घंटा सबेरे बड़ी फजर में सूर्योदय के करीब का होगा। इसके बाद अपना समय काम में ही खर्च करें। यह सुबह का पठन वर्ग हुआ।

ऐसे ही शाम को प्रौढ़ों के लिए एक घंटा श्रवण वर्ग होगा। शाम के श्रवण वर्ग में मनोरंजन के तौर पर दुनियाभर की जानकारी दी जाएगी। एक इनसाइक्लोपीडिया ऐसा हो,जो देहात के प्रवचनकर्ता के काम आए। बाबा कहते थे जैसे पहले महाभारत बना था। उसमें मुख्य कहानी के साथ साथ बीच बीच में अनेक जगह भूगोल इतिहास राजनीति आदि कई बातें गूंथीं गई हैं। शाम को पढ़ना लिखना उतना नहीं बल्कि रामायण या भागवत जैसी किताबों को पढ़कर सुनाना है। संतों के चरित्र सुनाए जाएं। गांव की समस्या पर चर्चा और खेती की जानकारी देना है।भजन, संगीत आदि सुनाया जाएगा। मनुष्य को जिंदगीभर के लिए ज्ञान की योजना इस तरह एक घंटे के क्लास से हो जाएगी। किसी को छुट्टी की जरूरत नहीं पड़ेगी। कहने को जहां छः घंटे का स्कूल चलता है वहां भी। छः माह तो छुट्टी रहती है तो ढाई घंटा ही पढ़ाई हुई न। यह स्कूल एक घंटे वाला रोज का होगा तो विस्मृत या भूलने का अवसर ही नहीं मिलेगा। जैसे रोज नहाने से शरीर की शुद्धि,रोज खाना खाने से शरीर की पुष्टि होती है ऐसे ही रोज थोड़ा थोड़ा अध्ययन करने से मन को तुष्टि मिलेगी। इसका खर्च भी सरकार पर नहीं आयेगा। हमारी शिक्षा ग्रामाबलंबी भी हो जाएगी। जो गुरु जी होंगे वे दिन भर अपना काम करेंगे तो उन्हें ज्यादा तनख्वाह की भी जरूरत नहीं होगी। गांव वालों को उनकी सेवा का एक घंटा रोज मिलेगा तो गांव वाले भी अपनी फसल का एक अंश उन्हें दे सकेंगे।

इस स्कूल का संबंध खेती, रसोई, गृह उद्योग आदि से ही होगा। आहार शास्त्र भी पढ़ाया जाएगा। गांव की सफाई के कर्तव्य का तो प्रैक्टिकल होगा। गांव में कोई रोग फैला हो तो उसके निवारण का ज्ञान दिया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति गांव में मरा तो उसी की मृत्यु विषय पर शिक्षण होगा। कहीं बारिश ज्यादा हुई तो आज का विषय कम फसल होगा।इस तरह गांव की हर घटना गांव का हर एक विषय हमारे ज्ञान प्राप्ति का साधन होगा।

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 गांव में ग्रामोदय समिति की तरफ से ग्रामोद्योग की अच्छी योजना बने,गांव में परिश्रमालय चले।तो उसमें लड़के और शिक्षक जा सकेंगे, लेकिन 3 घंटे से ज्यादा नहीं। उसमें मजदूरी पैसों में नहीं वस्तुओं के रूप में। मिले। गांव की ग्राम उत्थान समिति उस खर्च को उठाएगी। बाबा कहते थे कि सुबह का समय एकाग्रता से विद्या हासिल करने का उत्तम समय है। सायंकाल का जो।श्रवण वर्ग चलेगा, उसमें मनोरंजन कहानी कथा संगीत आदि होगा। उसमें किसी भी प्रकार की थकान के बिना ज्ञान हासिल होगा। अंत में जो भजन होगा। उसका अर्थ भी सिखाया जाना चाहिए। उसका अर्थ का मनन करते करते बच्चे_बूढ़े घर जाकर सो जाएंगे। बाबा तो मानते ही हैं कि निद्रा दैनिक मृत्यु है। निद्रा से पहले भगवद्भक्ति में अत्यंत तन्मय होकर मनुष्य सो जाता है। नि:स्वपन निद्रा आती है। शांति और उत्साह प्राप्त होता है,इसलिए निद्रा से पहले के समय को हम बहुत ही महत्व देते हैं। ऐसे स्कूलों के लिए पुस्तकों की व्यवस्था अगर सरकार करती है तो जरूर करे।

बाबा का कहना था कि आज शिक्षा में सार्थकता की अपेक्षा साक्षरता की ओर जो ध्यान दिया जाता है वह आत्मनाशक है। जब तक स्वाबलंबी उद्योगशक्ति पूर्ण विकसित नहीं होती,तब तक अक्षर शिक्षा किसी को एक घंटे से ज्यादा की जरूरत नहीं। जो लड़के स्वाबलंबनोप लयोगी कोई एक उद्योग या कला जीवन में हस्तगत कर लेते हैं, जिनको नीतिगत संस्कार मिले हों, जिन्होंने तीन चार साल सेवा की हो, ऐसे बच्चों को विशेष शिक्षा के लिए बाबा ने आगे बढ़ाया है। विशाल बुद्धि के विद्यार्थियों में सम्पूर्ण स्वाबलंबन, नैतिक संस्कार,सेवावृत्ति का निर्माण जरूरी है। इससे राष्ट्र को स्वाबलंबी सेवक मिलता है और हार्दिक गुरु शिष्य का संबंध निर्माण होता है।