विनोबा विचार प्रवाह ! एकवर्षीय मौन संकल्प का 294 वां दिन

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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विद्यालय हमारा भक्तिमार्ग का उपासना मंदिर बने_। विनोबा भावे

कर्मयोग में,संसार में, जीवन में सत्य प्रधान होता है। ज्ञानियों के दिमाग में और विद्वानों के पुस्तकालय में ज्ञान प्रधान होता है। भक्तिमार्ग में आनंद प्रधान होता है।

विद्यालय में परमेश्वर का आनंदस्वरुप प्रकट होना चाहिए। ईश्वर के वैसे तो अनंत रूप हैं पर उसमें से तीन बहुत प्रसिद्ध हैं।एक है सत दूसरा चित यानी ज्ञान और तीसरा है आनन्द। कर्मयोग में,संसार में,जीवन में सत्य प्रधान होता है। ज्ञानियों के दिमाग में और विद्वानों के पुस्तकालय में ज्ञान प्रधान होता है। भक्तिमार्ग में आनंद प्रधान होता है।

विद्यालय यानी भक्तिमार्ग,यानी वहां हर चीज आनंद के लिए ही की जाएगी। घर में रसोई बनाने में आनंद नहीं महसूस करते लेकिन अगर यही रसोई शाला में बने तो रोटी कैसे फूलती है यह देखकर खूब आनंद आएगा। दूध उफन रहा है।यह देखकर उन्हें मजा आएगा। चावल पकते है तो पतीली में कैसे नाचते_कूदते हैं। फिर खाने में अलग आनंद होगा। तरकारी तब अच्छी लगती है जब उसमें नमक भी नापतौल कर डाला गया हो। भोजन बिना मन खाना यानी ठूंसना फिर तकलीफ और डाक्टर का आमंत्रण होगा। यह सब तकलीफें न भोगकर आनंद से बर्तन भी मांजकर साफ करेंगे। बाबा का मानना था कि रात्रि होते ही ठीक साढ़े आठ बजे प्रकृति के गोद में आनंद के लिए सो जाएंगे। ऐसी सुंदर नींद में सपना भी नहीं दिखेगा। घड़ी के मुताबिक सोना हमारा चलेगा। बोधगया सम्मेलन में रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए बाबा को कोई कहने आए कि सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने चलें 

तो बाबा ने कहा कि हमारे लिए तुम्हारा यह दो घंटे का सांस्कृतिक कार्यक्रम नाकाफी है। बाबा का सांस्कृतिक कार्यक्रम तो आठ बजे से सुबह तीन बजे तक चलने वाला है। सोने का अद्भुत आनंद है। सबेरे ब्रह्मवेला में उठकर दौड़ना। हम सोते हैं तो ठंड भी सोती है, हम बैठते हैं तो बैठती है और दौड़ते हैं तो दौड़ती है। सुबह उठने का और दौड़ने का एक अलग आनंद है। सूर्योदय शरीर स्वच्छता का अलार्म है। आंख कान नाक धोएंगे, शहर में यह नित्यकर्म से पहले चाय पीने का रिवाज है। बाबा कहते थे कि हमारा मुख भी एक बर्तन है उसे बिना मांजे प्रयोग करना ठीक नहीं। दांतों की खराबी का भी वही कारण है। स्वच्छ होकर हम जलपान करेंगे। पचास चीजें नहीं सुबह के नाश्ते में कुछ हल्का सा खाना चाहिए। हर चीज के पकने का समय एक नहीं है। बावा का कहना था कि खाने के बाद कुदाल लेकर खेत की ओर प्रस्थान होगा।

बोना, पानी देना, काटना, खेत समतल करना, यह सब काम करने चाहिए।बचपन से ही खेती का आनंद लेना उत्तम होगा। अब बारी आई पढ़ने लिखने, संगीत की और चित्रकला की। इस तरह से चौबीसों घंटे ही आनंद का कार्यक्रम रहेगा। यही विद्यालय का कार्यक्रम है, भक्ति मार्ग का कार्यक्रम। अभी क्या होता है दिन भर बच्चा स्कूल में थकता है फिर शाम को उसे खेलने को कहा जाता।bस्कूल में हांथ पैर खोलने का कोई कार्यक्रम नहीं। पांच घंटे लगातार बैठे रहना। स्कूल जहां बच्चे का मन लगे। बाबा कहते थे कि स्कूल में कुछ विनोद का भी कार्यक्रम हो क्योंकि नादब्रह्म की उपासना उसमें है। लेकिन बाबा कहते थे कि यह बात हमारे ध्यान में रहनी चाहिए कि हमारे देश के लोग भूखे हैं। अगर कोई भूख से तड़फड़ा रहा है और उसे नाचना दिखाया जाए या गाना ही गाना हो यह सब मुश्किल ही है। बाबा ने चित्रकला के लोगों से कहा कि एक ऐसा चित्र खींचो जिसमें एक मनुष्य भूख से व्याकुल है।

दूसरा भूख से मरने की तैयारी में है। और तीसरा भूख से मर चुका है। ऐसा चित्र सामने रखकर ही हमें कार्यक्रम तय करना चाहिए। आज स्कूल में कहते है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। ठीक है,बाबा उसकी कद्र करता है। मनुष्य के जीवन में उसका भी स्थान है लेकिन उसके पीछे हम ऐसे पागल न बन जाएं कि हमारा जो मुख्य मकसद है,शिक्षण का,वह गायब हो जाए और हमारी जो मुख्य समस्या है उसे हम भूल जाएं।

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