द्वंद और प्रेम
अंधेरी रात में, एक पथिक चला है,
काँटों भरे रास्तों पर, उसका तन जला है
सपनों की मशाल लिए, वो तूफ़ानों से लड़ता है,
हर मोड़ पर एक नया पर्वत चढ़ता है,
यह रणभूमि है, जहाँ रोज़ एक नई चुनौती आई है,
यह कश्मकश है, जो हर श्वास में समाई है,
कभी हार की निराशा है, कभी जीत की आहट,
यह जीवन की लपट है, जिसमें हर स्वप्न तपता है,
हाँ, यही है वह युद्ध, जो हमें गढ़ता है,
हमें सोने से कुंदन बनाता है,
पर जब पथिक थककर बैठता है,
तब एक मीठी हवा उसे छू जाती है,
यह प्रेम अपनो का है, जो छाँव बन जाती है,
ये माँ का आँचल है, पिता का विश्वास है,
ये दोस्तों की हँसी है, जो हर ग़म भुलाती है,
यह प्रेम ही तो है, जो मरूस्थल में ओस की बूँद है,
जो अंधेरे में जुगनू की चमक है,
यह वह सहारा है, जो हर टूटे हुए को थामता है,
यह वह शांत सरोवर है, जहाँ आत्मा को सुकून से मिलाता है,
यह प्रेम ही तो है, जो जीवन को पूर्ण बनाता है,
और इस युद्ध को जीने का कारण समझाता है,
ये दोनों ध्रुव एक ही नदी के दो तट हैं,
एक के बिना दूजा अधूरा है,
जब कश्मकश की धूप तपती है,
तभी प्रेम की ठंडक समझ आती है
यह युद्ध और सुकून का अद्भुत संगम है,
जो हर इंसान के भीतर बसा है,
एक हमें लड़ना सिखाता है, दूसरा हमें जीना सिखाता है,
यही है जीवन का काव्य, यही है इसका सार।
रश्मि साबले, सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित

