संघर्ष

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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मन तो उलझता ही रहता है, हर शुरुआत एक सवाल से करता है।

आज फिर एक और दिन जगा,

फिर एक और संघर्ष का उदय होगा।

इस जगमगाती, झिलमिलाती सी ज़िंदगी में

और मुश्किलों और परेशानियों से जूझना होगा।

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मन तो उलझता ही रहता है,

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हर शुरुआत एक सवाल से करता है।

कहाँ जाऊँ, कैसे पाऊँ , 

यही तलाशता रहता है।

 

रिश्तों की डोर, ढीली नहीं पड़ती, पर उलझती सी रहती है।

कभी कभी शब्द नहीं होते, सिर्फ़ भारी सी खामोशी रहती है।

मंहगाई के साये में, सपने सिकुड़ जाते हैं,

पर कितने भी आ जायें, नोट ख़ुशियाँ नहीं ला पाते हैं।

 

मन की थकान का तो, इलाज ही नहीं होता,

हज़ारों लोग मिलते हैं,पर साथ कोई नहीं चलता।

अक्सर हताश होकर लगता है, बस थम जाऊँ यहीं,

पर वक़्त नहीं मानता,मेरी मंज़िल यहाँ नहीं।

 

ज़िंदगी आसान नहीं, पर बहुत से खूबसूरत पल ले आती है,

थोड़ी ख़ुद की कोशिश हो, क़िस्मत भी थोड़ी ले आती है।

हरेक मुश्किल एक सीख लेकर आती है,

हर अंधेरी रात के बाद ही तो सुबह आती है।

 

अपनों से बात करो, हँसो, खिलखिलाओ,

जब अपना मन टूटने, हारने लगे।

मुस्कान बाँटो, जब आँखें भीगने लगें,

पैसे चाहे कम पड़े, एहसासों को बढ़ा लें।

 

रिश्तों की गर्माहट से, दिलों को सजा लें,

और जब जब लगे, कि सब बिखर रहा है, धीरे धीरे,

तो याद रखें,

बीज भी मिट्टी में दब कर ही उगता है, फिर से।

- डॉ अंशु शर्मा

नई दिल्ली

(स्वरचित एवं मौलिक)

सर्वाधिकार सुरक्षित

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