मिलन
कुछ पल के लिए ज़िंदगी मुझे से गले मिली
जी भर के मुझको जी लो मुझसे कहने लगी
थाम कर हाथ मेरा ख़्वाबों में मुझे ले चली
हमसफ़र समझ के साथ मेरे चलने लगी
Read More शहरी इश्क़
वो गुनगुना रही थी मोहब्बत खड़ी-खड़ी
Read More झूठ फ़रेब
मुस्कुरा के मुझसे दिल्लगी वो करने लगी
Read More द्वंद और प्रेम
क़ातिल निगाहों से दिल पे वार कर गई
साँसों में घुल के मेरी अब मचलने लगी
सुकून-ए-दौलत मुझ पे बरसाती गई
मैं उसको और मुझे वो अपना समझने लगी
वो खेलती रही मुझ से आँख मिचौली
जगा के ख़्वाहिशों को जोश देने लगी
उदासियों को पानी में बहा के ले गई
ख़ुशियों से मेरे दामन को भरने लगी
रहमत की बारिशों से वो भिगोने लगी
हर लम्हे को दुआओं से नवाज़ने लगी
- डॉ. अपर्णा प्रधान, स्वरचित-सर्वाधिकार सुरक्षित

