नरा गांव में खनन माफिया का 'निजी परमिशन' गेम, 100 घन मीटर की छूट में कर रहे लाखों का व्यावसायिक खनन
जनपद की सदर तहसील के गांव नरा में खनन माफिया ने प्रशासनिक व्यवस्था को ही नियंत्रित कर एक बड़ा अवैध खनन सिंडिकेट चला रखा है।
नेशनल एक्सप्रेस, मुजफ्फरनगर (कौसर चौधरी)। जनपद की सदर तहसील के गांव नरा में खनन माफिया ने प्रशासनिक व्यवस्था को ही नियंत्रित कर एक बड़ा अवैध खनन सिंडिकेट चला रखा है।जानकारी के मुताबिक, इस गिरोह ने खनन विभाग से महज 100 घन मीटर मिट्टी की 'निजी उपयोग' के नाम पर अनुमति ले रखी है, लेकिन इसी आड़ में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खनन कर लाखों रुपये का अवैध कारोबार चलाया जा रहा है।
खनन कानून के तहत, आम नागरिकों को घर की मरम्मत या खेत के समतलीकरण जैसे निजी कामों के लिए एक निश्चित सीमा (इस मामले में 100 घन मीटर) तक मिट्टी खोदने की छूट दी जाती है। हालांकि, नरा गांव में स्थिति बिल्कुल भिन्न है। सूत्रों के मुताबिक, खनन माफिया ने इसी 'निजी उपयोग' वाली छूट का सरेआम दुरुपयोग करते हुए एक संगठित व्यवसाय शुरू कर दिया है।
'फ्लोटिंग' तकनीक से चल रहा है धंधा
यह अवैध खनन गांव के गंदे नाले से आगे अजमतगढ़ रोड के आस-पास के इलाकों में जमकर चल रहा है। प्रशासन की नजर बचाने के लिए गिरोह ने 'फ्लोटिंग' तकनीक अपनाई हुई है। इसके तहत, वे एक जगह पर कुछ देर खनन करने के बाद दूसरी जगह शिफ्ट हो जाते हैं, ताकि बड़े पैमाने पर हो रही खुदाई पर किसी की नजर न पड़े। जेसीबी मशीनों और दर्जनों ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की मदद से यह अवैध कारोबार रात-दिन चल रहा है।
400 रुपये प्रति ट्रॉली के हिसाब से बिक्री
इस पूरे अवैध ऑपरेशन का मकसद साफ तौर पर मुनाफा कमाना है। खोदी गई मिट्टी को ₹400 प्रति ट्रॉली के हिसाब से बेचा जा रहा है। एक दिन में दर्जनों ट्रॉलियों की बिक्री से यह गिरोह हजारों रुपये की अवैध कमाई कर रहा है, जबकि उन्होंने विभाग को महज नाममात्र का शुल्क ही अदा किया है।
पर्यावरण और सुरक्षा को गंभीर खतरा
इस अवैध खनन के चलते न सिर्फ भूमि का भारी कटाव और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो रहा है, बल्कि एक और बड़ा खतरा पैदा हो गया है। खुदाई के बाद बची खाली जगहों में मिट्टी का अवैध और अस्थिर भराव किया जा रहा है। यह भराव ठोस नहीं होता, जिससे भविष्य में भूस्खलन या अन्य भीषण दुर्घटनाओं का खतरा बना हुआ है।
प्रशासन और खनन विभाग पर उठ रहे सवाल
यह मामला प्रशासन और खनन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर निजी उपयोग की छोटी सी अनुमति के नाम पर इतने बड़े पैमाने पर चल रहे व्यावसायिक खनन पर विभाग की नजर क्यों नहीं पड़ रही? क्या जेसीबी मशीनों और दर्जनों ट्रॉलियों के आवागमन से जुड़ी कोई जानकारी विभाग तक नहीं पहुंचती? स्थानीय लोगों का आरोप है कि इसके पीछे विभागीय अधिकारियों और खनन माफिया की मिलीभगत है, जो प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रही है।
इस संबंध में खनन विभाग के अधिकारियों से उनकी प्रतिक्रिया जानने का प्रयास किया गया, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।

