धोखाधड़ी के आरोप वाली जनहित याचिका पर शीर्ष अदालत का केंद्र, सीबीआई, ईडी व अनिल अंबानी को नोटिस
उच्चतम न्यायालय ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम), इसके समूह की कंपनियों और उनके प्रवर्तक से जुड़ी कथित व्यापक बैंकिंग और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर मंगलवार को केंद्र, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), अनिल अंबानी और अन्य को नोटिस जारी किए।
नयी दिल्ली, भाषा। उच्चतम न्यायालय ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम), इसके समूह की कंपनियों और उनके प्रवर्तक से जुड़ी कथित व्यापक बैंकिंग और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर मंगलवार को केंद्र, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), अनिल अंबानी और अन्य को नोटिस जारी किए। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले और पूर्व केंद्रीय सचिव ई ए एस शर्मा की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर गौर किया और तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
पीठ ने अब जनहित याचिका पर आगे की सुनवाई तीन सप्ताह बाद करना निर्धारित किया है। भूषण ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसियां इस बड़े बैंकिंग घोटाले में बैंकों और उनके अधिकारियों की कथित मिलीभगत की जांच नहीं कर रही हैं। उन्होंने सीबीआई और ईडी को इस मामले में बैंकों और उनके अधिकारियों के खिलाफ जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "नोटिस जारी करें... तीन हफ़्तों में जवाब दें। उन्हें अपना जवाब दाखिल करने दें।"
जनहित याचिका में अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस एडीए समूह की कई कंपनियों में सार्वजनिक धन के व्यवस्थित तरीके से दुरुपयोग, वित्तीय विवरणों में हेराफेरी और संस्थागत मिलीभगत का आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि 21 अगस्त को सीबीआई द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी और इससे संबंधित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्यवाही, कथित धोखाधड़ी के केवल एक छोटे से हिस्से पर ध्यान देती है।
याचिका में दावा किया गया है कि गंभीर अनियमितताओं को चिन्हित करने वाले विस्तृत फोरेंसिक ऑडिट के बावजूद, कोई भी एजेंसी बैंक अधिकारियों, लेखा परीक्षकों या नियामकों की भूमिका की जांच नहीं कर रही है। उन्होंने इसे "गंभीर विफलता" करार दिया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि व्यवस्थित धोखाधड़ी और धन के दुरुपयोग के निष्कर्षों को मुंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले में न्यायिक रूप से "स्वीकारा" गया है।

