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संपादकीय

विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन संकल्प का 284 वां दिन

विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन संकल्प का 284 वां दिन
चीन और जापानवालों को उसका पता सालों बाद हुआ। आज दुनिया की छोटी सी भी घटना का असर हिंदुस्तान के बाजार पर तुरंत हो जाता है। इस जमाने की सबसे बड़ी शक्ति है, निर्णय_ शक्ति। उसी को प्रज्ञा कहते हैं। जिसकी प्रज्ञा स्थिर हो गई,उसे स्थितप्रज्ञ कहते हैं।

विकसित भारत संकल्प में अगली पीढ़ी व नए जीएसटी सुधार

प्रत्येक राज्य ने अपनी कर दरों, शुल्कों और प्रक्रियाओं को अपनाये रखा था, जिससे पूरे भारत में व्यापार व आर्थिक व्यवस्था जटिल और अनुपालन बोझिल हो गया था। व्यवसायों को अक्सर दोहराव वाले करों, असंगत नियमों और इनपुट के लिए सीमित ऋण प्राप्ति का सामना करना पड़ता था। नवीनतम सुधार जीएसटी संरचना का एक बड़ा सरलीकरण है।
विमर्श  संपादकीय 

वर्ल्ड कप या जीवन: मोरक्को की सड़कों पर सवाल

जेन जेड—वो पीढ़ी, जिसे दुनिया स्क्रीन पर झूमता नौजवान कहती थी—अब सड़कों पर है, आग उगलती हुई। उनके नारे हवा को चीर रहे हैं: "वर्ल्ड कप नहीं, ज़िंदगी चाहिए!" यह विरोध नहीं, एक ज्वालामुखी है, जो टिकटॉक और डिस्कॉर्ड की चिंगारियों से भड़क उठा।
विमर्श  संपादकीय 

धरती पर हर प्राणी का अधिकार : संवेदनशीलता का पर्व

धरती की हर धड़कन में एक अनकही पुकार गूँजती है—उन जीवों की, जो बिना शब्दों के अपनी पीड़ा बयां करते हैं। उनकी मौन आँखों में छिपा दर्द सुनाई तो नहीं देता, मगर उनका जीने का अधिकार उतना ही सच्चा है, जितनी हमारी साँसें।
विमर्श  संपादकीय 

21वीं सदी का छिपा हुआ पर्यावरणीय बम

तकनीकी प्रगति ने मानव जीवन को अभूतपूर्व सुविधाएँ प्रदान की हैं। स्मार्टफोन, लैपटॉप, टेलीविजन जैसे उपकरणों ने हमारे काम, संचार और मनोरंजन के तरीकों को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है।
राष्ट्रीय  विमर्श  संपादकीय 

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