क्या नेता भी नीलाम हो सकते हैं?
राकेश अचल की कलम से
कल्पना कीजिये कि यदि नेताओं का चयन चुनाव के बजाय नीलामी से होने लगे तो बेस प्राइस—मोदी से राहुल, शाह से लेकर पप्पू-टप्पू-गप्पू तक! सभी का तय किया जाएगा।
आईपीएल के लिए जब खिलाडियों की नीलामी होते देखता हूँ कि नेताओं की भी नीलामी होना चाहिए. सर्वश्रेष्ठ नेता को भुगतान केंद्रीय चुनाव आयोग को करना चाहिए. ऐसा करने से न एस आई आर की जरुरत और न चुनाव की.
कल्पना कीजिये कि यदि नेताओं का चयन चुनाव के बजाय नीलामी से होने लगे तो बेस प्राइस—मोदी से राहुल, शाह से लेकर पप्पू-टप्पू-गप्पू तक! सभी का तय किया जाएगा। देश में जब आईपीएल में 350 खिलाड़ी नीलाम हो सकते हैं,तो क्या 543,सांसद नीलम नही हो सकते !
कैमरन ग्रीन पहले सेट में जा सकते हैं…तो फिर राजनीति के खिलाड़ी क्यों नहीं? राजनीति प्रीमियर लीग के लिए नीलामी अबू धाबी में नहीं बल्कि , दिल्ली के किसी एसी हॉल में… होना चाहिए.. पहला सेट कैप्टेन मटीरियल का हो.नरेंद्र मोदी — बेस प्राइस: "आत्मनिर्भर भारत",राहुल गांधी — बेस प्राइस: “भारत जोड़ो डिस्काउंट ऑफर”,अमित शाह — हॉट पिक, टीमों की पहली पसंद,ममता बनर्जी — बोलिंग, बैटिंग, फील्डिंग—सब खुद करेंगी और प्रियंका गांधी — “इमेज बूस्टर ऑल-राउंडर” हो सकता है.
सेट-2में टीवी पर ज्यादा काम, मैदान में कम के लिएपप्पू — बेस प्राइस: 75 लाख इमोजी,टप्पू — बेस प्राइस: 50 लाख फॉरवर्ड मैसेज, और गप्पू — बेस प्राइस: 1 करोड़ भाषण, आधे सच-आधे अफवाह रखी जा सकती है.
सेट-3में अन कैप्ड नेता नीलामी के लिए रखे जा सकते हैं.जो हर पार्टी में घूमकर ट्रायल दे चुके हैं या जो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के टॉपर हैं या फिर जो हर मुद्दे पर “मुझे भी कुछ कहना है” वाले हैं
आरपीएल यानि राजनीति प्रीमियर लीग की फ्रेंचाइजी दिल्ली डिसअपॉइंटर्स,भोपाल भाषणबाज़,लखनऊ लुकबिजी सुपरजाएंट्स,कोलकाता कांड राइडर्स, या जयपुर जुमला किंग्स को दी जा सकती है.और नीलाम करने वाला बोलेगा
"लीडर नंबर 1 — कोई 100 करोड़ में जाएगा क्या?"फ्रेंचाइजियां जवाब दें
"सर, खिलाड़ी चाहिए, कॉन्टेंट क्रिएटर नहीं!"
हकीकत यही है कि खिलाड़ियों की नीलामी होती है क्योंकि वे खेलते हैं।नेताओं की नीलामी नहीं होती क्योंकि वे जनता को खेलते हैं।खिलाड़ी बिकते भी हैं तो खेल के लिए।नेता बिकें तो… लोकतंत्र ही बिक जाएगा।
फन्ने खां अक्सर कहते हैं कि नेता लेकिन बिकते ज़रूर हैं!
वैसे दुनिया में ऐसी परंपरा नहीं होगी,जहाँ नेता खुलेआम “वन टाइम सेटेलमेंट” में मिल जाएं।पर भारत तो भारत है—यहाँ नेता नीलामी में नहीं,नेगोशिएशन में बिकते हैं।कोई खुल्लम खुल्ला तो कोई पार्टी बदलते ही मुस्कान तीन गुना.विचारधारा वॉशिंग मशीन में धुलकर चमकती नई टिकट मिलते ही जनता ‘मालिक’, जीतते ही जनता ‘यात्री’.
कुछ “एक रात में सरकार बदलवा दूँ?” टाइप डील
कहीं “हमसे बड़ा कोई जनादेश नहीं—हमारी रेटिंग अलग है”और पेमेंट.
नेता दो किस्म के होते हैं—पहलाचुनाव से पहले नोट गिनते हैं,
चुनाव के बाद वोट गिनते हैं। दूसरे मंत्री पद, बोर्ड का चेयरमैन, निगम का डायरेक्टर,राजभवन का गेस्ट रूम — सब मुद्रा हैं।नकद की महक अलग,और “मेरा विभाग कौन सा होगा?” की खुशबू अलग।
असल सच ये है कि यदि खिलाड़ी बिक जाए तो टीम मजबूत होती है।नेता बिक जाए तो देश कमजोर होता है।खिलाड़ी के दाम तय होते हैं,नेता की कीमत नहीं — कीमत चुकानी पड़ती है।इसलिए जनता सावधान रहे.नेता न नीलामी का ले,न बिकाऊ —टिकाऊ चुने, सच्चा चुने,
जनता का साथ निभाने वाला चुने। जो चुनाव से पहले नहीं,चुनाव के बाद भी याद रखे कि मालिक जनता है।मतदान सिर्फ उंगली पर स्याही नहीं,एक-एक वोट देश के भविष्य पर आपकी मुहर है।
- राकेश अचल

