वन्य जीवों की बढ़ती मौत पर सख़्त हो : सरकार

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
On

अरविंद रावल की कलम से

वन्य जीवों के अवैध शिकार से इनकार नहीं किया जा सकता। निगरानी के अत्याधुनिक तकनीकी साधन उपलब्ध होने के बावजूद शिकार की घटनाओं में वृद्धि यह संकेत देती है कि तंत्र के कुछ जिम्मेदार लोगों की मिलीभगत की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

देश के अनेक राज्यों में वन्य जीवों के संरक्षण हेतु अभयारण्य बनाकर न केवल इनकी सुरक्षा की जा रही है, बल्कि प्रजाति-वृद्धि एवं प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के प्रयास भी निरंतर जारी हैं। इसके बावजूद वर्ष 2025 में विभिन्न राज्यों से प्राप्त आंकड़ों को जोड़ने पर शेर, बाघ, बाघिन, तेंदुआ और यहाँ तक कि चीतों की सैकड़ों असमय मृत्यु सामने आना अत्यंत चिंताजनक है।

यह स्थिति केवल राज्य सरकारों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के नागरिकों के लिए गंभीर चिंतन का विषय होनी चाहिए। सवाल यह उठता है कि करोड़ों रुपये संरक्षण पर खर्च होने के बावजूद इन खूंखार किंतु संरक्षित प्रजातियों की असमय मृत्यु क्यों नहीं रुक पा रही है? स्वाभाविक है कि वन्य जीव कभी-कभी आपसी संघर्ष में घायल होकर मरते हैं, किंतु उनकी संख्या एक वर्ष में कुछ दर्जन से अधिक नहीं होती। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जहाँ वन्यजीवों को बचाने की प्रतिबद्धता सबसे अधिक जताई जाती है, वहीं उनकी मौत के आंकड़े सबसे अधिक मिलते हैं। इस स्थिति में प्रशासनिक तंत्र की भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी है।

वन्य जीवों के अवैध शिकार से इनकार नहीं किया जा सकता। निगरानी के अत्याधुनिक तकनीकी साधन उपलब्ध होने के बावजूद शिकार की घटनाओं में वृद्धि यह संकेत देती है कि तंत्र के कुछ जिम्मेदार लोगों की मिलीभगत की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। यह स्थिति राज्य सरकारों द्वारा संचालित महत्वाकांक्षी संरक्षण परियोजनाओं को गहरा आघात पहुँचाती है।

मानव द्वारा अंधाधुंध जंगलों के विनाश का दुष्परिणाम वन्य जीवों को हर दिन भुगतना पड़ रहा है। कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और कुछ विलुप्ति के कगार पर हैं। इसी स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू किया था, जिसका उद्देश्य अवैध शिकार पर रोक लगाना और वन्य जीवों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने हेतु अभयारण्यों की स्थापना करना था। केंद्र और राज्य सरकारें संरक्षण के लिए ईमानदार प्रयास करती हैं, परंतु रात के अंधेरे में होने वाले अवैध शिकार हमेशा इन प्रयासों पर पानी फेर देते हैं।

Read More वायु प्रदूषण से निपटना : एक प्रणालीगत समस्या जिसके लिए प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता है

जंगलों के सिकुड़ते दायरे का प्रभाव यह हुआ है कि वन्य जीवों का विचरण क्षेत्र सीमित हो गया है। परिणामस्वरूप शेर, तेंदुए, बाघ और चीते शहरों, कस्बों तथा गाँवों तक पहुँचने लगे हैं, जो मानव और पशु—दोनों के जीवन के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

Read More ग्रह अधिक आबादी वाला है

शिकारी कभी कंटीले तारों का जाल बिछाकर, तो कभी करंट के माध्यम से अवैध शिकार करते हैं तथा वन्य जीवों के अंगों की तस्करी तक को अंजाम देते हैं । वर्ष 2025 के शुरुआती छह महीनों में ही देशभर में लगभग 110 बाघों की मौत दर्ज होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वन्य जीवों का अवैध शिकार किस स्तर पर जारी है। संविधान ने जैसे मनुष्यों को जीवन का अधिकार दिया है, वैसे ही वन्य जीवों को भी उनके स्वाभाविक जीवन का अधिकार प्रदान किया है। फिर क्यों मानव उनके अस्तित्व पर ही संकट बनता जा रहा है?

Read More मिठास की बोली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे राज्यों से वन्य जीवों की मौत के कारणों पर विस्तृत रिपोर्ट लेकर सुरक्षा को नए सिरे से प्रभावी एक्शन प्लान दें। अवैध शिकार के मामलों में दोषियों पर मानव हत्या की तरह ‘वन्य जीव हत्या’ का मुकदमा दर्ज कर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। जब तक यह सख्ती नहीं अपनाई जाएगी, तब तक वन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में ही रहेगा।

आधुनिकता और विलासिता के इस दौर में जहाँ लोग मोबाइल स्क्रीन में खोए रहते हैं, वहाँ मूक वन्य जीवों की मौत पर संवेदना जगाने की उम्मीद करना कठिन होता जा रहा है। इसलिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर जागरूकता, सख्त निगरानी और सक्रिय संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ वन्य जीवों को केवल किताबों और संग्रहालयों में ही देख पाएंगी।