दिल्ली दंगों के मामले में शरजील के भाषणों के लिए अन्य आरोपियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है: पुलिस
दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि कार्यकर्ता शरजील इमाम के भाषणों के लिए अन्य आरोपियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
नयी दिल्ली, भाषा। दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि कार्यकर्ता शरजील इमाम के भाषणों के लिए अन्य आरोपियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों में उनके खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ के समक्ष यह दलील दी कि किसी भी साजिश में शामिल सभी लोग एक-दूसरे के कृत्यों के लिए उत्तरदायी हैं।
राजू ने पीठ को बताया, “एक षड्यंत्रकारी के कृत्यों का आरोप दूसरों पर लगाया जा सकता है। शरजील इमाम के भाषणों का आरोप उमर खालिद पर लगाया जा सकता है। शरजील इमाम के मामले को दूसरों के खिलाफ सबूत के तौर पर माना जाएगा।”एएसजी ने दलील दी कि खालिद ने जानबूझकर दंगों से पहले दिल्ली छोड़ने की योजना बनाई थी, क्योंकि वह जिम्मेदारी से बचना चाहता था।
राजू ने कहा कि योजना खालिद ने बनाई थी और यह गलत बताया गया है कि वह दंगों से कथित रूप से संबंधित ‘व्हाट्सऐप’ समूह का ‘एडमिन’ नहीं था।शीर्ष अदालत ने सभी वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और उन्हें 18 दिसंबर तक लिखित दलीलें, चार्ट व अन्य दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया।
मामले में जमानत की गुहार लगाते हुए, इमाम ने न्यायालय के समक्ष इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया था कि बिना किसी पूर्ण सुनवाई या एक भी दोषसिद्धि के उसे “खतरनाक बौद्धिक आतंकवादी” करार दिया गया है।इमाम का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने अपने मुवक्किल के हवाले से कहा, “मुझे पुलिस ने आतंकवादी करार दिया है। मैं राष्ट्र-द्रोही नहीं हूं, जैसा कि राज्य ने मुझे कहा है। मैं इस देश का नागरिक हूं, जन्म से नागरिक हूं और अब तक मुझे किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है।”
उन्होंने दलील दी कि इमाम को 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से पहले का समय था, और केवल उसके भाषणों के आधार पर दंगों के मामले में “आपराधिक साजिश” का अपराध नहीं बनता है।खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जब फरवरी 2020 में दंगे भड़के थे, तब उनका मुवक्किल दिल्ली में नहीं था और उसे इस तरह कैद में नहीं रखा जा सकता।
गुलफिशा फातिमा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने अदालत को बताया कि कार्यकर्ता ने लगभग छह साल का समय कारावास में बिताया है। उन्होंने मुकदमे में देरी को “आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व” बताया।दिल्ली पुलिस ने उमर, शरजील और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि फरवरी 2020 में दंगे अचानक नहीं हुए थे, बल्कि भारत की संप्रभुता पर हमला करने के लिए पूर्व नियोजित तरीके से इन्हें अंजाम दिया गया था।
उमर, शरजील और अन्य आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनीगतिविधियां (निवारण) अधिनियम, 1967 और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन पर आरोप है कि वे 2020 के दंगों के “सरगना” हैं, जिनमें 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।आरोपियों ने फरवरी 2020 के दंगों की “बड़ी साजिश” रचने से जुड़े मामले में जमानत से इनकार के दिल्ली उच्च न्यायालय के दो सितंबर के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष न्यायालय का रुख किया है।

