न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए: प्रधान न्यायाधीश गवई
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने सोमवार को कहा कि न्यायिक सक्रियता को “न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद” में नहीं बदलना चाहिए।
नयी दिल्ली, भाषा। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने सोमवार को कहा कि न्यायिक सक्रियता को “न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद” में नहीं बदलना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि भारत में न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी और जहां कहीं भी विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहती हैं, वहां देश की संवैधानिक अदालतों, चाहे वे उच्च न्यायालय हों या सर्वोच्च न्यायालय, को हस्तक्षेप करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “लेकिन साथ ही, न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए।”
न्यायमूर्ति गवई इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एफआई रेबेलो की किताब ‘आवर राइट्स: एसेज ऑन लॉ, जस्टिस एंड द कॉन्स्टिट्यूशन’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि उन्होंने (न्यायमूर्ति रेबेलो ने) बहुत स्पष्ट रूप से बताया है कि न्यायाधीशों को किस सीमा के भीतर न्यायिक सक्रियता का सहारा लेना चाहिए।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायमूर्ति रेबेलो ने विभिन्न विषयों पर लिखा है।
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति रेबेलो ने बताया है कि किस तरह कानून और संविधान ने भारत जैसे विविधतापूर्ण देश को एकजुट रखने का मार्ग प्रशस्त किया है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “न्यायमूर्ति रेबेलो आज न्यायपालिका के समक्ष मौजूद समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में संकोच महसूस नहीं करते।” उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों में विधानमंडल, संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने हमेशा व्यावहारिक तरीके से काम किया है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “मुझे विश्वास है कि यह किताब, जो न्यायाधीशों, वकीलों और मेरे जैसे विधि के छात्रों के लिए एक खजाना साबित होगी, हम सभी को सामाजिक और आर्थिक समानता की यात्रा पर चलने में मदद करने के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगी...।” इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश विक्रम नाथ और कई अन्य न्यायाधीश व वरिष्ठ वकील भी मौजूद थे।

