पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को धन शोधन मामले में पांच साल की कैद
विशेष पीएमएलए न्यायाधीश के. एम. सोजित्रा ने उन्हें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 3 और 4 के तहत दोषी करार दिया।
अहमदाबाद, भाषा। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी प्रदीप शर्मा को 2003 से 2006 के बीच एक निजी कंपनी को रियायती दर पर सरकारी जमीन देने से संबंधित धन शोधन के एक मामले में एक विशेष अदालत ने शनिवार को पांच साल कैद की सजा सुनाई। उक्त अवधि के दौरान शर्मा कच्छ जिला कलेक्टर थे। अदालत ने उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।विशेष पीएमएलए न्यायाधीश के. एम. सोजित्रा ने उन्हें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 3 और 4 के तहत दोषी करार दिया।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जांच के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त की गई शर्मा की संपत्तियां केंद्र सरकार के कब्जे में रहेगी।ईडी के अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय ने मार्च 2012 में शर्मा और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया था। शर्मा को पहली बार जुलाई 2016 में गिरफ्तार किया गया था और मार्च 2018 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
जांच से पता चला कि जिला भूमि मूल्य निर्धारण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष के रूप में शर्मा ने मानदंडों का उल्लंघन करते हुए रियायती दरों पर वेलस्पन इंडिया लिमिटेड को सरकारी भूमि का एक बड़ा हिस्सा मंजूर किया था।ईडी ने दावा किया कि शर्मा ने वेलस्पन इंडिया और उसकी समूह कंपनियों से प्राप्त अपराध की आय को ठिकाने लगाने के लिए अपनी पत्नी के बैंक खाते का इस्तेमाल किया। अपराध की आय का इस्तेमाल आवास ऋण चुकाने और कृषि भूमि खरीदने आदि में किया गया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शर्मा को कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए कथित तौर पर अवैध रिश्वत मिली थी, और उनकी पत्नी, जो अमेरिका में रहती हैं, के खाते में 29.5 लाख रुपये जमा किए गए थे। उन पर कंपनी से एक मोबाइल सिम कार्ड प्राप्त करने का भी आरोप है, जिसके लिए उन्होंने 2004 और 2009 के दौरान अपराध की आय के रूप में 2.24 लाख रुपये का भुगतान किया था।ईडी ने आरोपपत्र में कहा था कि रिश्वत की रकम को ठिकाने लगाने के लिए उनकी पत्नी को 2004 से 2007 के बीच एक संबद्ध फर्म, वैल्यू पैकेजिंग प्राइवेट लिमिटेड में 30 प्रतिशत भागीदार बनाया गया था।
संघीय एजेंसी ने कहा कि यह साझेदारी वास्तव में एक विशेष प्रयोजन माध्यम था जिसके जरिये अपराध की आय उनके एनआरओ खाते में भेजी जाती थी।राजकोट स्थित सीआईडी (अपराध) ने मार्च 2010 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत शर्मा के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसके बाद सितंबर 2010 में भारतीय दंड संहिता के तहत एक और मामला दर्ज किया गया था।
सीआईडी ने शर्मा पर सरकारी खजाने को 1.20 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था।सितंबर 2014 में भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया था।वर्ष 2010 की प्राथमिकी के आधार पर, प्रवर्तन निदेशालय के अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय ने मार्च 2012 में शर्मा और अन्य के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया।
जांच के दौरान, ईडी ने गांधीनगर जिले में जमीन और एक घर सहित शर्मा की संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया। अलावा अप्रैल 2025 में, भुज की एक अदालत ने 2004 में एक निजी कंपनी को सरकारी जमीन के आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित 2011 के एक मामले में शर्मा को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई और 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
सॉ पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा यह मामला भी 2004 में कच्छ ज़िला कलेक्टर के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान सरकारी खजाने को हुए नुकसान से संबंधित था।शर्मा और तीन अन्य को उस मामले में दोषी करार दिया गया था।शर्मा वर्तमान में जेल में बंद हैं।

