न्यायपालिका में एआई के उपयोग के विनयमन से संबंधित याचिका पर सुनवाई से न्यायालय का इनकार

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग के 'अनियमित' उपयोग को रोकने से संबंधित एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया।

नयी दिल्ली, भाषा। उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग के 'अनियमित' उपयोग को रोकने से संबंधित एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह न्यायपालिका में एआई और मशीन लर्निंग उपकरणों के दुष्प्रभावों से अवगत है, लेकिन इन मुद्दों का समाधान न्यायिक निर्देशों के बजाय प्रशासनिक स्तर पर अधिक उपयुक्त रूप से किया जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम लाल दास की दलील सुनी, जो याचिकाकर्ता कार्तिकेय रावल की ओर से पेश हुए थे।

याचिका में एआई से बने कंटेंट से उत्पन्न जोखिमों और उसके कथित दुरुपयोग से न्यायिक प्रक्रियाओं पर पड़ने वाले प्रभावों के खिलाफ सुरक्षात्मक कदम उठाने का अनुरोध किया गया था। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “वरिष्ठ वकील ने कहा है कि एआई ऐसे न्यायिक संदर्भ या फैसले तैयार कर सकता है, जो अस्तित्व में ही नहीं होते, और बाद में वे न्यायिक निर्णयों का हिस्सा बनाए जा सकते हैं।” चिंताओं को स्वीकार करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह बार और न्यायाधीशों दोनों के लिए एक सीख है।

अदालत ने कहा कि यह वकीलों और न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे एआई से बने संदर्भों और निर्णयों की सत्यता की जांच करें। पीठ ने कहा कि न्यायिक अकादमियों तथा बार निकायों में न्यायिक अधिकारियों व वकीलों के प्रशिक्षण के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। सीजेआई ने कहा, “हम इसका उपयोग बहुत सावधानी से करते हैं और हम नहीं चाहते कि यह हमारी न्यायिक निर्णय-प्रक्रिया पर हावी हो जाए।”

सीजेआई ने कहा कि यद्यपि एआई न्यायिक कार्यों में सहायता कर सकता है, लेकिन यह न्यायिक तर्क या विवेचना का स्थान नहीं ले सकता और न ही उस पर प्रभाव डाल सकता है। दास ने कहा कि निचली अदालतें ‘उच्चतम न्यायालय के अस्तित्वहीन संदर्भों’ का हवाला देने लगी हैं।” उन्होंने कहा कि इस स्थिति में शीर्ष अदालत की ओर से नियामक दिशानिर्देश जारी किए जाने की आवश्यकता है।

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लेकिन सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका ऐसे जोखिमों से अवगत है और न्यायिक प्रशिक्षण के माध्यम से इनसे निपटा जा रहा है। उन्होंने कहा, “न्यायाधीशों को पड़ताल करनी चाहिए। यह न्यायिक अकादमी के पाठ्यक्रम का हिस्सा है और इसका ध्यान रखा जाता है। समय के साथ बार भी सीखेगा और हम भी सीखेंगे।” उन्होंने कहा कि अदालत को किसी न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नजर नहीं आती।

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दास ने एआई को लेकर केरल उच्च न्यायालय के तंत्र और उच्चतम न्यायालय के श्वेतपत्र जैसी पहलों की ओर इशारा किया। प्रधान न्यायाधीश ने दोहराया कि चिंताएं वाजिब हैं, लेकिन न्यायिक रूप से कार्रवाई योग्य नहीं हैं। उन्होंने याचिकाकर्ता को उच्चतम न्यायालय को प्रशासनिक पक्ष पर सुझाव भेजने के लिए आमंत्रित किया। सीजेआई ने कहा, “जो कोई भी ईमानदार इरादे से सुझाव देना चाहता है, उसका स्वागत है। आप हमें मेल कर सकते हैं।” पीठ के रुख को भांपते हुए, दास ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे स्वीकार कर लिया गया।

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