तरक्की के लिए

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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कविता

सुना है यहाँ, इसी जगह,

एक जंगल हुआ करता था।

घना, ऊंचे- ऊंचे पेड़ों वाला,

जो आसमान को छिपा लेते थे।  

भयानक जंगली जानवर 

जिसपर राज किया करते थे।

 

जंगल के बीच एक नदी बहती थी,

जहाँ शेर, हिरन, भालू, हाथी

सब साथ पानी पिया करते थे।  

जंगल की ज़मीन कीड़े मकौड़ों का घर थी।  

और पेड़ चिड़ियों का बसेरा थे।     

 

फिर उस जंगल के किनारे 

एक शहर बस गया,

और धीरे-धीरे पेड़ गुम होने लगे। 

पहले उस शहर के घरों के लिए,

फिर मेज़ कुर्सियों के लिए,

फिर खेती के लिए,

चूल्हा जलाने के लिए,

सड़क बनाने के लिए,

तरक्की के लिए....

 

खुदको बनाने के लिए शहर

पूरे जंगल को निगल गया,

पर ये भूल गया  

कि उसे चाहिए थी,

मिट्टी, चलने के लिए,

आनाज उगाने के लिए।  

नदी , पानी पीने के लिए,

साफ़ हवा, सांस लेने के लिए,

और पेड़... इन सब के लिए,

जिन्हे वो काट चुका था  

तरक्की के लिए।  

- आशा सिंह गौर

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