'ओडीओपी' की पहचान पर छाया प्रदूषण का काला साया, जहरीले धुएं से घुट रहीं सांसें
जीआई टैग प्राप्त मुजफ्फरनगर के गुड़ की मिठास पर भारी पड़ रहा कोल्हूओं का जहरीला ईंधन। प्लास्टिक और रबड़ जलाने से एक्यूआई खतरनाक स्तर पर, दमा और सांस के मरीजों की बढ़ी आफत। मॉडल कोल्हू योजना बैंकों की बेरुखी से हुई फेल, मात्र एक इकाई ही कर रही काम।
नेशनल एक्सप्रेस ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। जिस मुजफ्फरनगर के गुड़ को साल 2023 में जीआई टैग मिला और जिसकी मिठास दुनिया भर में मशहूर है, आज वहीं गुड़ कोल्हूओं से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों की सांसों और जिले की अंतरराष्ट्रीय पहचान दोनों के लिए खतरा बन गया है। उत्तर प्रदेश सरकार की 'एक जिला-एक उत्पाद' (ओडीओपी) योजना में शामिल गुड़ उद्योग अब प्रदूषण का पर्याय बनता जा रहा है। अक्टूबर 2025 में जिले का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 295 तक पहुंच गया था, जो खतरनाक श्रेणी के बेहद करीब है।
कोल्हूओं में जल रहा मौत का सामान
जिले में 3500 से अधिक कोल्हू गुड़ उत्पादन से जुड़े हैं, जो सालाना लगभग 4500 करोड़ रुपये के कारोबार का आधार हैं। लागत कम करने के चक्कर में कई कोल्हू संचालक अवैध रूप से प्लास्टिक, रबड़, पुराने कपड़े और पॉलीथिन जैसे प्रतिबंधित और घातक कचरे को ईंधन के रूप में जला रहे हैं। इससे निकलने वाला जहरीला धुआं न केवल वायु प्रदूषण बढ़ा रहा है, बल्कि गुड़ की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रहा है। यह धुआं सांस और अस्थमा रोगियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है।
प्रशासन की कार्रवाई : सिर्फ खानापूर्ति?
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रशासन ने हाल के महीनों में कई छापेमारी अभियान चलाए हैं। नवंबर 2025 में चरथावल क्षेत्र में प्लास्टिक और कपड़ा जलाने पर छह गुड़ निर्माण इकाइयों को सील कर पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। इससे पहले जानसठ और पुरकाजी के फलौदा गांव में भी कार्रवाई की गई, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि ये कार्रवाइयां नाकाफी हैं। रात के अंधेरे में अब भी कई कोल्हूओं में प्रतिबंधित ईंधन जलाया जा रहा है।
बैंकों के असहयोग से फेल हुई 'मॉडल कोल्हू' योजना
सरकार द्वारा प्रदूषण मुक्त 'मॉडल कोल्हू' लगाने की योजना धरातल पर दम तोड़ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो साल में 130 आवेदनों में से बैंकों ने केवल सात को ऋण स्वीकृत किया और वर्तमान में महज एक मॉडल कोल्हू ही काम कर रहा है। साफ-सुथरी तकनीक के लिए वित्तीय सहयोग न मिलने के कारण कोल्हू मालिक सस्ता और प्रदूषणकारी ईंधन इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।
मंडी से गायब हो रहा गुड़, व्यापारियों में रोष
प्रदूषण के साथ-साथ गुड़ कारोबार के स्वरूप में आए बदलाव से व्यापारी भी आक्रोशित हैं। गुड़ मंडी के व्यापारियों का आरोप है कि 'गुड़ माफिया' सीधे कोल्हूओं से गुड़ की सप्लाई कर रहे हैं, जिससे मंडी में आवक 98 हजार मन से घटकर महज चार-पांच हजार मन रह गई है। व्यापारियों ने कृषि उत्पादन मंडी अधिनियम में सुधार की मांग की है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण से परेशान लोग अब सीधे पुलिस और प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं।

