उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद धनखड़ का पहला सार्वजनिक संबोधन, आरएसएस की तारीफ की

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए चार महीने पहले उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित किया।

भोपाल, भाषा। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए चार महीने पहले उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारों और एक मजबूत राष्ट्र बनाने के दृष्टिकोण की प्रशंसा की। धनखड़ ने अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही इस साल 21 जुलाई को अचानक इस्तीफा दे दिया था। शुक्रवार को उन्होंने आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य की लिखी किताब "हम और यह विश्व" का विमोचन किया।

धार्मिक नेताओं और मीडिया से जुड़े जाने-माने लोगों की एक सभा को संबोधित करते हुए, धनखड़ ने देश के भरोसे, सांस्कृतिक जड़ों और संस्थाओं की एकता को बनाए रखने की बात कही। संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही उनके इस्तीफ़े को मंज़ूरी मिली थी। इसके बाद उन्हें आखिरी बार सितंबर में नए उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण समारोह में देखा गया था। धनखड़ ने लेखक और किताब के समय की तारीफ़ करते हुए सभ्यता की ताकत को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा, "हमें अंदरूनी आत्मविश्वास और सभ्यतागत ताकत के साथ दुनिया से जुड़ना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यह किताब इस सोच को बढ़ावा देने और भारत की सांस्कृतिक नींव में विश्वास को मज़बूत बनाने  के लिए "दिमाग के टॉनिक" की तरह काम करती है। हिंदी में अपना भाषण शुरू करते हुए उन्होंने कहा, "हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां सोच ही असलियत तय करती है। चाहे आप इसे कितना भी नकारते रहें।"

बाद में, पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह अंग्रेजी में अपना भाषण देंगे। उन्होंने कहा, "... मैं इसके पीछे अपना इरादा समझाऊंगा।” उन्होंने कहा, "जिनसे चुनौती आ रही है, जो नहीं समझते हैं, जो समझना नहीं चाहते हैं, और जो किसी भी कीमत पर बदनाम करना चाहते हैं, वे मेरे असली इरादे को तब तक नहीं समझेंगे जब तक मैं उनकी विशिष्ट भाषा में बात नहीं करूंगा।” धनखड़ ने कहा, "पुस्तक हमें यह एहसास करने पर मजबूर करती है 6,000 से अधिक वर्षों के सतत सभ्यतागत ज्ञान के माध्यम से आकार ले रहे भारत के पास अशांति में दुनिया का मार्गदर्शन करने की अद्वितीय क्षमता है।"

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धनखड़ ने कहा कि यह किताब मुश्किल और जटिल वर्तमान को समझने और भविष्य के लिए प्रेरणा देने का एक ज़रिया है। उन्होंने कहा, "यह आठ साल में लिखे गए लेखों का संग्रह है। इसीलिए प्रणब दा (पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी) पर दो लेख हैं। हम निश्चित रूप से अपनी सांस्कृतिक बुनियाद और जड़ों को महसूस करेंगे।" पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी के नागपुर में संघ के मुख्यालय जाने और उससे जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "जून 2018 में डॉ. प्रणब मुखर्जी के नागपुर में संघ मुख्यालय के दौरे ने कई लोगों को हैरान किया और तीखी प्रतिक्रियाएं दीं, कुछ लोगों ने तो इस दौरे को ईशनिंदा तक कहा।”

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धनखड़ ने कहा, "निंदा की हद और बड़ाई बहुत ज़्यादा लग रही थी। इसे एक ,'नैरेटिव' के तौर पर सामने लाने के लिए बनाया गया था ताकि राष्ट्रवादी रुख को कमजोर किया जा सके। फिर भी, अपने समय के सबसे बड़े नेताओं में से एक, प्रणब दा ने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मस्थान पर अतिथि पुस्तक में यह कहकर पूरे विवाद को शांत कर दिया, "आज मैं यहां भारत माता के एक महान सपूत को सम्मान और श्रद्धांजलि देने आया हूं,"।

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उन्होंने दर्शकों की हंसी के बीच कहा कि हाल ही में उनके बारे में भी एक विमर्श बनाया गया था। लेकिन उन्होंने इस पर और बात नहीं की। धनखड़ ने कहा, “एक खिलते हुए भारत को आकार देने की मुख्य ज़िम्मेदारी उसके लोगों की है। नागरिकों में ही आर्थिक राष्ट्रवाद की एक मज़बूत भावना को गढ़ने, सुरक्षा का एक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने और एक गहरे सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने की बहुत ज़्यादा क्षमता होती है।” संघ से जुड़े कार्यक्रम में धनखड़ के शिरकत करने को भाजपा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के एक मजबूत राजनीतिक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।मीडिया ने धनखड़ से बात करने की पूरी कोशिश की, लेकिन कार्यक्रम के बाद वह मीडिया से बात किए बिना चले गए।

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