धरती पर हर प्राणी का अधिकार : संवेदनशीलता का पर्व

प्रोफेसर आरके जैन 'अरिजीत' की कलम से विश्व पशु कल्याण दिवस पर विशेष
धरती की हर धड़कन में एक अनकही पुकार गूँजती है—उन जीवों की, जो बिना शब्दों के अपनी पीड़ा बयां करते हैं। उनकी मौन आँखों में छिपा दर्द सुनाई तो नहीं देता, मगर उनका जीने का अधिकार उतना ही सच्चा है, जितनी हमारी साँसें।
धरती की हर धड़कन में एक अनकही पुकार गूँजती है—उन जीवों की, जो बिना शब्दों के अपनी पीड़ा बयां करते हैं। उनकी मौन आँखों में छिपा दर्द सुनाई तो नहीं देता, मगर उनका जीने का अधिकार उतना ही सच्चा है, जितनी हमारी साँसें। हर साल 4 अक्टूबर को विश्व पशु कल्याण दिवस के रूप में यह पुकार हमें झकझोरती है। यह महज़ एक तारीख नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है—सभी प्राणियों के प्रति करुणा, सम्मान और संरक्षण का संकल्प। यह वह क्षण है, जब हमें ठहरकर पूछना होगा: क्या हम सचमुच ऐसी दुनिया बना रहे हैं, जहाँ हर जीव का जीवन उतना ही अनमोल हो, जितना हमारा?
विश्व पशु कल्याण दिवस की नींव संत फ्रांसिस ऑफ अस्सीसी के प्रेम और प्रकृति के प्रति समर्पण से पड़ी, जिन्होंने हर जीव को ईश्वर का अंश माना। 1931 में इटली से शुरू हुआ यह आंदोलन आज वैश्विक मंच पर पशु अधिकारों और उनके कल्याण की मज़बूत आवाज़ बन चुका है। लेकिन चुनौतियाँ अब भी बरकरार हैं। जंगल सिकुड़ रहे हैं, प्रजातियाँ खामोशी से विलुप्त हो रही हैं, और पशु क्रूरता की घटनाएँ हमारे समाज पर दाग़ की तरह हैं। विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की 2022 की रिपोर्ट चीख-चीखकर बताती है कि 1970 से अब तक वन्यजीवों की आबादी में 69% की गिरावट आई है। क्या हमारी तरक्की की कीमत इन बेज़ुबान जीवों की ज़िंदगी होनी चाहिए?
पशु कल्याण केवल भावनाओं का विषय नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय ज़रूरत भी है। शोध साबित करते हैं कि चिंपैंजी, ऑक्टोपस, यहाँ तक कि कौवे भी गहरी बुद्धिमत्ता और भावनात्मक संवेदनशीलता रखते हैं। कौवे उपकरण बनाकर समस्याएँ सुलझाते हैं, तो हाथी अपने साथियों के लिए शोक मनाते हैं। डॉल्फ़िन आपसी सहयोग से खतरों का सामना करती हैं। ये तथ्य हमें बताते हैं कि पशु न सिर्फ़ जीवित प्राणी हैं, बल्कि संवेदनाओं और सामाजिक बुद्धि से परिपूर्ण हैं। उनकी भावनाओं को अनदेखा करना, हमारी अपनी मानवता को कमज़ोर करना है।
पशुओं का शोषण एक ऐसी सच्चाई है, जो हमारे समाज पर गहरा दाग़ छोड़ता है—चाहे वह अवैध शिकार की क्रूरता हो, सर्कस में बेज़ुबानों के साथ अत्याचार हो, या प्रयोगशालाओं में अनैतिक परीक्षणों का दर्द। विश्व पशु संरक्षण संगठन की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट बताती है कि हर साल 70 अरब से अधिक जानवर मांस, डेयरी और अंडे के लिए मारे जाते हैं, जिनमें से अधिकांश को अमानवीय, हृदयविदारक परिस्थितियों में रखा जाता है। भारत जैसे देश में, जहाँ गाय को माँ का दर्जा दिया जाता है, वहाँ भी सड़कों पर आवारा पशुओं की दुर्दशा और उनकी अवैध तस्करी एक कड़वा सच है। पेटा इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लाखों पशु मांस और चमड़े के लिए गैर-कानूनी तस्करी का शिकार होते हैं। यह सवाल उठाता है—क्या हमारी परंपराएँ और आधुनिकता की दौड़ में पशु कल्याण कहीं भटक गया है?
पशु कल्याण केवल नैतिकता का विषय नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य का आधार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 60% से अधिक संक्रामक रोग पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं। SARS, MERS और COVID-19 जैसे ज़ूनोटिक रोग हमें चेतावनी देते हैं कि जब हम जंगलों को नष्ट करते हैं, पशुओं के प्राकृतिक आवास छीनते हैं, या उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में कैद करते हैं, तो हम अपनी ही सेहत को दाँव पर लगाते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की 2020 की रिपोर्ट बताती है कि वनों की कटाई और अवैध वन्यजीव व्यापार ने ज़ूनोटिक रोगों का जोखिम 30% तक बढ़ा दिया है। यह साफ़ है कि पशु कल्याण और मानव कल्याण एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं—एक की उपेक्षा, दूसरे को खतरे में डालती है।
लेकिन सवाल यह है कि हम बदलाव कैसे लाएँ? विश्व पशु कल्याण दिवस न केवल जागरूकता का, बल्कि ठोस कदमों का आह्वान है। व्यक्तिगत स्तर पर, हम छोटे बदलावों से शुरुआत कर सकते हैं—मांसाहारी भोजन कम करना, जैविक और कल्याणकारी खेती से उत्पादित सामग्री चुनना, और पशु उत्पादों का विवेकपूर्ण उपयोग। सामुदायिक स्तर पर, भारत के ब्लू क्रॉस और वाइल्डलाइफ SOS जैसे संगठनों का समर्थन करें, जो घायल और परित्यक्त पशुओं की देखभाल करते हैं। बच्चों को पशुओं के प्रति करुणा सिखाना भविष्य को संवेदनशील बनाने का सबसे शक्तिशाली कदम है।
आर्थिक नज़रिए से भी पशु कल्याण के लाभ अनगिनत हैं। कल्याणकारी खेती से प्राप्त मांस, दूध और अंडे न केवल पौष्टिक हैं, बल्कि पर्यावरण पर बोझ भी कम करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, टिकाऊ और कल्याणकारी खेती ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 20-30% तक कम कर सकती है। भारत जैसे देश में, जहाँ पशुपालन अर्थव्यवस्था का मज़बूत स्तंभ है, कल्याणकारी प्रथाएँ अपनाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मज़बूती मिल सकती है। यह केवल पशुओं का नहीं, बल्कि हमारी धरती और भावी पीढ़ियों का सवाल है।
विश्व पशु कल्याण दिवस हमें एक गहरी सच्चाई से रूबरू कराता है—पशु संरक्षण केवल जंगलों में रहने वाले वन्यजीवों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे घरों और गलियों में साँस लेने वाले हर प्राणी का हक है। भारत में करीब 6 करोड़ आवारा कुत्ते भोजन, आश्रय और चिकित्सा के अभाव में तड़पते हैं। हमारे पालतू जानवर—कुत्ते, बिल्लियाँ और अन्य साथी—भी उतने ही प्यार और देखभाल के हकदार हैं। एक छोटा-सा कदम, जैसे टीकाकरण में मदद करना, या उनके लिए आश्रय की व्यवस्था करना, इन बेज़ुबान जीवों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है।
इस दिन का मूल संदेश है—सम्मान, सह-अस्तित्व और करुणा। जब हम किसी जानवर की रक्षा करते हैं, तो हम सिर्फ़ उसकी जान नहीं बचाते, बल्कि अपनी मानवता को भी पोषित करते हैं। विश्व पशु कल्याण दिवस हमें सिखाता है कि यह धरती सभी प्राणियों की साझा विरासत है। यह केवल विचारों का दिन नहीं, बल्कि कर्म का आह्वान है। चाहे वह पक्षियों के लिए एक बर्तन में पानी रखना हो, या पशु संरक्षण नीतियों का समर्थन करना—हर छोटा-बड़ा प्रयास इस धरती को और जीवंत बनाता है।
पशु कल्याण सिर्फ़ उनकी सुरक्षा का सवाल नहीं, बल्कि हमारी आत्मा को बचाने का मिशन है। जब हम प्रकृति और इसके हर जीव के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव अपनाते हैं, तो हम एक ऐसी दुनिया रचते हैं जो न केवल टिकाऊ, बल्कि करुणामय और न्यायपूर्ण भी है। विश्व पशु कल्याण दिवस हमें यही संदेश देता है—हर जीव की धड़कन हमारी धड़कन से जुड़ी है। इस दिन को एक नए संकल्प का प्रतीक बनाएँ—एक ऐसी दुनिया का वादा, जहाँ हर प्राणी के लिए सम्मान, प्यार और सुरक्षा हो। हर कदम गिनती करता है, हर संकल्प बदलाव लाता है।