वर्ल्ड कप या जीवन: मोरक्को की सड़कों पर सवाल
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प्रोफेसर आरके जैन की कलम से
जेन जेड—वो पीढ़ी, जिसे दुनिया स्क्रीन पर झूमता नौजवान कहती थी—अब सड़कों पर है, आग उगलती हुई। उनके नारे हवा को चीर रहे हैं: "वर्ल्ड कप नहीं, ज़िंदगी चाहिए!" यह विरोध नहीं, एक ज्वालामुखी है, जो टिकटॉक और डिस्कॉर्ड की चिंगारियों से भड़क उठा।
मोरक्को की रातों में अब खून की गंध तैरती है। अगादिर का हसन-2 अस्पताल, जहाँ आठ माताओं की साँसें सिस्टम की विफलता में थम गईं, अब चीखों का गढ़ बन चुका है। ये चीखें सिर्फ दर्द की नहीं, बल्कि उस आक्रोश की हैं, जो 3.7 करोड़ लोगों के देश में बेरोजगारी, भुखमरी और जर्जर अस्पतालों की सड़ांध से उपजा है। जेन जेड—वो पीढ़ी, जिसे दुनिया स्क्रीन पर झूमता नौजवान कहती थी—अब सड़कों पर है, आग उगलती हुई। उनके नारे हवा को चीर रहे हैं: "वर्ल्ड कप नहीं, ज़िंदगी चाहिए!" यह विरोध नहीं, एक ज्वालामुखी है, जो टिकटॉक और डिस्कॉर्ड की चिंगारियों से भड़क उठा। किताबों की जगह पत्थर थामे ये युवा पूछ रहे हैं: "जब अस्पतालों में बिस्तर नहीं, तो स्टेडियमों पर अरबों क्यों?"
मोरक्को—जहाँ माराकेश की रंग-बिरंगी गलियाँ पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करती हैं, जहाँ कासाब्लांका की चमकती इमारतें आधुनिकता की कहानी कहती हैं, और एटलस स्टूडियोज़ 'अफ्रीका का हॉलीवुड' बनकर चमकता है—आज अपने ही बच्चों के गुस्से की आग में झुलस रहा है। राजा मोहम्मद VI की प्रतीकात्मक सत्ता और प्रधानमंत्री अजीज अखन्नौच की सरकार के सामने एक सवाल तलवार-सा खड़ा है: 16 अरब डॉलर (लगभग 13.4 लाख करोड़ रुपये) का खजाना, जो 2030 फीफा वर्ल्ड कप और और अफ्रीका कप ऑफ नेशंस (AFCON) 2025 के लिए स्टेडियमों, हाई-स्पीड रेल और आलीशान होटलों पर लुटाया जा रहा है, वह उन अस्पतालों में क्यों नहीं, जहाँ ऑक्सीजन की कमी माताओं को निगल रही है? उन स्कूलों में क्यों नहीं, जहाँ शिक्षक और किताबें गुमनाम हैं?
आर्थिक रफ्तार 3% पर ठहर गई, जबकि सरकार का सपना 6% का था। बेरोजगारी 12.8% है, लेकिन युवाओं में यह 35.8% की भयावह ऊँचाई छू रही है। स्नातकों में 19% बेरोजगार—वो नौजवान, जिनकी डिग्रियाँ तो डेस्क पर सज गईं, मगर नौकरियाँ हवा में उड़ गईं। स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है—1430 लोगों पर एक डॉक्टर, जो वैश्विक औसत (590 पर एक) से ढाई गुना कम है। सितंबर 2025 में हसन-2 अस्पताल में प्रसव के दौरान आठ माताओं की मौत ने इस जख्म को कुरेद दिया। अब इसे 'डेथ हॉस्पिटल' कहते हैं—एक ऐसा नाम, जो मोरक्को की स्वास्थ्य व्यवस्था की क्रूर सच्चाई को उजागर करता है।
मोरक्को की सड़कों पर अब आग की लपटें और आक्रोश की चिंगारियाँ नाच रही हैं। जेन जेड 212—मोरक्को के टेलीफोन कोड 212 से जन्मा यह नाम—एक बगावत की पहचान बन चुका है। बिना किसी नेता का यह विद्रोह 18 सितंबर को डिस्कॉर्ड के एक छोटे से सर्वर से फूटा, जहाँ 1000 नौजवानों की आवाज़ 2 अक्टूबर तक 1.5 लाख की हुंकार बन गई। टिकटॉक पर वायरल वीडियो, डिस्कॉर्ड पर गुप्त चैट रूम्स—यहीं से रैलियों का शंखनाद हुआ। रबात के कामगार इलाकों से शुरू हुआ यह तूफान अब कासाब्लांका, अगादिर, ओउज्दा, टैंजियर और माराकेश को अपनी चपेट में ले चुका है। बैंकों में आग, दुकानों और गाड़ियों में तोड़फोड़, माराकेश में एक पुलिस स्टेशन राख का ढेर। अगादिर में पुलिस की गोलियों ने तीन युवा जिंदगियाँ छीन लीं। गृह मंत्रालय की ठंडी गिनती कहती है: 1000 से ज़्यादा गिरफ्तार, 354 घायल—70% नाबालिग। 260 पुलिसकर्मी, 20 प्रदर्शनकारी चोटिल। 40 पुलिस वाहन, 20 निजी गाड़ियाँ जलकर खाक।
प्रदर्शनकारी चीख-चीखकर कह रहे हैं: "स्वास्थ्य पहले, फुटबॉल बाद में!" "स्टेडियम चमक रहे हैं, अस्पताल कहाँ मर गए?" फुटबॉल अल्ट्रास और रैपर ईल ग्रांडे टोटो ने इस आग में घी डाला। स्टार गोलकीपर यासीन बौनू की गिरफ्तारी ने इसे और भड़का दिया। AFCON 2025 को गर्मियों से दिसंबर में खिसकाया गया, क्योंकि फीफा क्लब वर्ल्ड कप की चमक ज़्यादा थी। लेकिन 16 अरब डॉलर का खर्च—तीन नए स्टेडियम, छह का विस्तार—क्या यह जायज़ है, जब माताएँ ऑक्सीजन के लिए तड़प रही हैं? प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे हैं: "वर्ल्ड कप का बहिष्कार करो, जैसे ब्राजील ने 2014 में किया!"
युवा सरकार को भ्रष्टाचार का आइना दिखा रहे हैं। रॉयल फैमिली का निवेश फंड अल मदा, जो वर्ल्ड कप से मुनाफे की उम्मीद में लपलपाता है, निशाने पर है। माँगें साफ हैं: सरकार इस्तीफा दे, कैबिनेट भंग हो, राजा मोहम्मद VI नई शुरुआत करें। एमनेस्टी इंटरनेशनल और अमध ने पुलिस की बर्बरता और मनमानी गिरफ्तारियों पर लानत भेजी है। प्रधानमंत्री अखन्नौच ने 'संवाद' का ढोंग रचा, मगर युवा गरज रहे हैं: "वादे नहीं, कार्रवाई चाहिए!" जेन जेड 212 का राजा को खुला पत्र गूंज रहा है: भ्रष्ट पार्टियाँ हटाओ, गिरफ्तारों को रिहा करो, स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ाओ।
यह आग सिर्फ मोरक्को की नहीं, वैश्विक जेन जेड के विद्रोह की लपट है। नेपाल में युवाओं ने पिछले महीने प्रधानमंत्री को घुटनों पर ला दिया। मेडागास्कर में राष्ट्रपति ने सरकार भंग की। इंडोनेशिया, फिलीपींस, पेरू, बांग्लादेश, श्रीलंका—हर जगह जेन जेड सड़कों पर है, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और असमानता के खिलाफ जंग छेड़े हुए। बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना का तख्त पलटा, श्रीलंका में राजपक्षे शासन धूल में मिला। मोरक्को में भी यही लहर है। टिकटॉक पर एक वीडियो—एक युवा की आँखों में आँसू, आवाज़ में सवाल: "मेरी माँ मर गई, क्योंकि ऑक्सीजन नहीं थी। वर्ल्ड कप से क्या होगा?" 20 लाख बार देखा गया यह वीडियो आग की तरह फैला। डिस्कॉर्ड पर रणनीतियाँ बनीं, और सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी।
मोरक्को की सड़कों पर अब सिर्फ आग नहीं, बल्कि एक उफनता समंदर उमड़ रहा है। हिंसा की लपटें भड़क रही हैं—दो से पाँच मौतें, सैकड़ों घायल। पुलिस का बर्बर बल—गोलियाँ, आँसू गैस—युवाओं के गुस्से को और भड़का रहा है। फिर भी, इन नौजवानों के सीने में आशा का दीया टिमटिमा रहा है। वे 'वन पीस' मंगा के झंडे लहरा रहे हैं—जापानी कॉमिक का वह प्रतीक, जहाँ समुद्री डाकू सत्ता के जुल्मों से टकराते हैं। यह झंडा चीखता है: ये बच्चे 'परजीवी' नहीं, मोरक्को का भविष्य हैं।
सरकार के सामने रास्ता साफ है, मगर काँटों से भरा। 2030 वर्ल्ड कप चमकता अवसर हो सकता है, पर युवाओं के लिए यह बोझ बन चुका है। अगर इसे थोपा गया, तो यह अभिशाप होगा। अस्पतालों में बिस्तर, स्कूलों में शिक्षक, युवाओं के लिए नौकरियाँ—ये माँगें नहीं, हक हैं। राजा मोहम्मद VI, जिन्हें जेन जेड 212 'नई शुरुआत' की उम्मीद से देख रहा है, अब चौराहे पर खड़े हैं। युवाओं का संदेश गूंज रहा है: "हमारी आवाज़ को कुचला नहीं जा सकता!" डिजिटल स्क्रीनों से सड़कों तक उतरे ये बच्चे अब रुकने वाले नहीं। सवाल यही है: क्या मोरक्को बदलाव की राह अपनाएगा, या दमन की अंधेरी गली में भटकेगा? यह आग सिर्फ सड़कों पर नहीं; हर उस युवा के दिल में धधक रही है, जो स्टेडियमों की चकाचौंध के पीछे टूटे अस्पतालों की हकीकत देखता हूं।