विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन संकल्प का 286वां दिन

अध्ययन में लम्बाई चौड़ाई का महत्व नहीं, महत्व है गंभीरता का
समाधिस्थ होकर नित्य निरंतर थोड़ी देर तक किसी निश्चित विषय के अध्ययन को बाबा गंभीर अध्ययन कहते हैं। दस_ बारह घंटे करवट बदल_बदल के सोना या सपने देखते रहना, इस नींद से विश्रांति नहीं मिलती। परंतु पांच_ छह घंटे गाढ़ निद्रा आए तो उससे पूर्ण विश्रांति मिलती है। समाधि अध्ययन का प्रमुख तत्व है।
बहुत देर तक घंटों भांति_भांति के विषयों का अध्ययन करते रहने को बाबा लंबा_चौड़ा अध्ययन कहता है। समाधिस्थ होकर नित्य निरंतर थोड़ी देर तक किसी निश्चित विषय के अध्ययन को बाबा गंभीर अध्ययन कहते हैं। दस_ बारह घंटे करवट बदल_बदल के सोना या सपने देखते रहना, इस नींद से विश्रांति नहीं मिलती। परंतु पांच_ छह घंटे गाढ़ निद्रा आए तो उससे पूर्ण विश्रांति मिलती है। समाधि अध्ययन का प्रमुख तत्व है।
समाधियुक्त गंभीर अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं। अनेक विषयों पर गट्ठा भर पढ़ाई से कुछ हांथ नहीं लगता। प्रतिभा मानी बुद्धि में नई-नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नई स्फूर्ति, नई खोज यह सब प्रतिभा के लक्षण हैं। दो बिंदुओं से रेखा का निश्चय होता है।जीवन का मार्ग भी दो बिंदुओं से निश्चित होता है। हम हैं कहां, यह पहला बिंदु, जाना कहां है, यह है दूसरा बिंदु। इन दोनों से ही जीवन की दिशा तय होती है। इस पर लक्ष्य रखे बिना इधर_ उधर भटकते रहने से रास्ता तय नहीं हो पाता। गंभीर अध्ययन का सारांश अल्पमात्रा, सातत्य, समाधि, कर्मावकाश और निश्चित दिशा।
वर्तमान जीवन में आवश्यक कर्मयोग का स्थान रखकर ही सारा अध्ययन करना चाहिए।अन्यथा भविष्य_ जीवन की आशा में वर्तमान काल में मरने जैसा प्रकार बन जाता है। शरीर कितना विश्वास अर्ह है, इसका अनुभव तो हर एक को है ही। भगवान की हम सब पर अपार कृपा ही समझनी चाहिए, कि हममें वह कुछ न कुछ कमी रख ही देता है। वह चाहता है कि यह कमी जानकर हम जागृत रहें। बाबा ने विद्यार्थियों के लिए पांच हिदायतें बताई हैं।
1_ रोज एक घंटा शरीर परिश्रम करना चाहिए। उससे जो आय हो वह समाजोपयोगी काम में खर्च करनी चाहिए।
2_ छुट्टियों में गांव में जाकर सफाई या अन्य सामाजिक सेवा करनी चाहिए।
3_ विद्यार्थी का संकल्प यह होना चाहिए कि अपने से भिन्न धर्म,भाषा, जाति अथवा पंथ के किसी भी व्यक्ति को अपना मित्र साथी बनाएंगे।
4_ अच्छी हिंदी सीख लेनी।चाहिए ताकि भारत के किसी कोने में वे अपना विचार अच्छे ढंग से रख सकेंगे। अन्य प्रांतों के साथ संबंध भी बनेंगे।
5_ सुबह शाम आधा घंटा व्यायाम करना चाहिए। रोज जल्दी सोकर ,जल्दी उठना _ यह जीवन का सूत्र बनाना चाहिए। रात में घंटों अभ्यास के बदले ब्रम्हमुहूर्त में चंद घंटे अभ्यास करना ज्यादा अच्छा है। शिक्षा में परिवर्तन हो इसकी चिंता विद्यार्थी को ही। ज्यादा होनी चाहिए। उसके हांथ में एक बड़ा अस्त्र है कि शिक्षा में परिवर्तन करो नहीं तो हम स्कूल छोड़ देंगे। समाज के और मुद्दों पर हड़ताल आदि सुनने में आती है।लेकिन शिक्षा में बदलाव के लिए आवाज कम ही उठी है। जब बच्चे स्कूल में नहीं होंगे तो शिक्षक भी। किसको पढ़ाएंगे। बाबा कहते थे कि आज के जमाने की मांग है कि आज जो तालीम चल रही है उसे जल्द से जल्द दफना दी जाए।दफनाना दो प्रकार से होता है। एक इज्जत के साथ। लेकिन यह तालीम उस इज्जत की भी पात्र नहीं। क्योंकि यह हिंदुस्तान के जिगर को खा रही है, लोगों का पराक्रम खत्म कर रही है। बाबा भी कालेज छोड़कर ही ज्ञान की खोज में निकले थे।
उसके बाद ज्ञान के अनंत द्वार खुल गए। कालेज में कालक्षेप होता था। आज स्वराज्य के बाद भी उस शिक्षण में कोई बहुत बदलाव नहीं आया है। बाबा कहते थे कि समाज में हुक्काम और हुकमी _ सिर्फ हुक्म करनेवाले और हुक्म माननेवाले। यही दो वर्ग समाज में हैं। विद्यार्थी वह है जिसको विद्या की लगन हो।वह निरंतर चिंतन मनन करता हो। वह दिमाग ही हमारा मुख्य मार्गदर्शक है। उसको ही खो बैठोगे तो सबकुछ खो बैठोगे।
बाबा हड़ताल से दुखी होते थे। क्योंकि उससे जन सामान्य को परेशानी होती थी। एक बार बच्चों ने बाबा से पूंछा कि अगर हम पढ़ना छोड़ देंगे तो हमें समाज में प्रतिष्ठा कैसे मिलेगी? बाबा ने कहा कि तुलसी_ नानक_ कबीरआदि संत कौन से कालेज में पढ़े थे? फिर भी। उनको प्रतिष्ठा मिली। बाबा ने। अगर यूनिवर्सिटी का शिक्षण लिया होता तो एम ए बी ए तो हो जाता लेकिन यह भूदान यज्ञ का बड़ा काम नहीं कर पाता। बाबा जब कॉलेज में पढ़ते थे तब रोज दस पंद्रह किलोमीटर घूमते थे और लाइब्रेरी में जाकर रोज पढ़ते थे। बाबा दस हजार किताबें उस समय तक पढ़ चुके थे।