लिफ्ट
कतार में खड़े
आगे पीछे होते कई चेहरे
तेज आवाज में बाते करता हुआ
Read More झूठ फ़रेब
दूजा खींजता, मन मसोसता हुआ
Read More द्वंद और प्रेम
तो कोई ऊपर की ओर देखता
Read More शहरी इश्क़
मानो छत को भेदकर क्रांति तोड़ लाएगा
आईना देख सुन्दर छवि पर इतराती वह
इम्पोर्टेड जुते और महँगी गाड़ी की चाबी सह
तो किसी के परफ्यूम की तेज़ महक
वो मन पे चढ़ती जलन की ऐंठन
कोई टटोलती पर्स में उमंग,अस्तित्व, यादें
किसी माथे पर सिलवटे,
यों कि सच से साक्षात्कार होने ही वाला है
कुछ हाथ थामे एक दूसरे को देखते
वादे करते अंत तक साथ रहने के
कोई एकटक घूरता बंद गेट को
उसका लक्ष्य स्पष्ट और ऊँचा जो है
किसी की मीलों घिसी चप्पल और
हाथ में घर से मिला डिब्बाबंद मोह
कोई सबसे हँसकर रिश्ते बनाता
कोई गुनगुनाए जाता अपनी धुन में रमा
सब अपनी अपनी मंजिल को टोहते
पदार्पण से निकास तक
जन्म मृत्यु तक का पूरा फेरा,
कितना सहज अनुभव है न
यह लिफ्ट का सफर।
- जूही गुप्ते

