विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन साधना का 292 वां दिन
आश्रम स्थापना से गांव का वातावरण भी आध्यात्मिक हो जाता है
विचारों का प्रत्यक्ष जीवन से नाता टूट जाने से विचार निर्जीव हो जाते हैं और जीवन विचार शून्य बन जाता है। बाबा कहते थे कि मनुष्य घर में जीता है और शाला में विचार सीखता है। इसलिए जीवन और विचार का मेल नहीं बैठता।
कौटुंबिक पाठशाला में जीवन और विचार का समन्वय हो जाता है_ विनोबा... विचारों का प्रत्यक्ष जीवन से नाता टूट जाने से विचार निर्जीव हो जाते हैं और जीवन विचार शून्य बन जाता है। बाबा कहते थे कि मनुष्य घर में जीता है और शाला में विचार सीखता है। इसलिए जीवन और विचार का मेल नहीं बैठता। इसका उपाय यही है कि एक ओर से घर में शाला का प्रवेश होना चाहिए और दूसरी ओर से शाला में घर दिखना चाहिए। समाज_ शास्त्र को चाहिए कि शालीन कुटुंब निर्माण करें और शिक्षण शास्त्र को चाहिए कि कौटुंबिक पाठशाला स्थापित करें ।
छात्रालय अथवा शिक्षकों के घर को शिक्षा की बुनियाद मानकर उस पर शिक्षण की इमारत रखनेवाली शाला ही कौटुंबिक शाला है।
ऐसी कौटुंबिक शाला के जीवनक्रम के संबंध में_ पाठ्यक्रम यहां दिया है
1_ईश्वर_निष्ठा संसार में सारवस्तु है। अतः दोनों समय प्रार्थना होनी चाहिए। साथ में किसी का निश्चित पाठ भी जरूरी है। सर्वेषामविरोधेन की हमारी नीति हो। एक प्रार्थना रात को सोने के पहले और दूसरी सुबह सोकर उठने पर होनी चाहिए।
2_आहार_शुद्धि का चित्त_शुद्धि से निकट का संबंध है। अतः हमारा आहार सात्विक होना चाहिए। गरम मसाला, मिर्च,चीनी और तले पदार्थ निषेध होना चाहिए।दूध और दूध से बने पदार्थों का मर्यादित उपयोग करना चाहिए।
3_ किसी दूसरे से रसोई नहीं बनवानी चाहिए। रसोई स्वयं बनानी चाहिए क्योंकि रसोई का शिक्षण भी शिक्षा का एक अंग है। सिपाही, प्रवासी, ब्रम्हचारी सबको रसोई आनी चाहिए।
4_ कौटुंबिक पाठशाला में अपने पाखाने साफ करने का काम अपने हांथ से ही करना है। मात्र छुआछूत को ही अस्पृश्यता नहीं मानना है किसी समाजोपयोगी काम से नफरत करना भी उसी अस्पृश्यता का अंग है। स्वच्छता जीवन में जरूरी है।
5_ इस पाठशाला में अस्पृश्यों को स्थान मिलना ही चाहिए। कौटुंबिक पाठशाला में भोजन में किसी प्रकार का पंक्तिभेद रखना नहीं चाहिए।
6_ रोज स्नान ठंडे पानी से और सबेरे सबेरे करना चाहिए।
7_ प्रातःकर्म की जितनी मान्यता वैसे ही महत्व सायं_कर्म का भी है। सोने से पहले देह_शुद्धि आवश्यक है। खुली हवा में सोने का नियम माना गया है।
8_ किताबी शिक्षा के बजाय उद्योग_ प्रधान शिक्षा पर जोर देना है। कम_ से_ कम तीन घंटे तो उद्योग को दिए ही जाएं। उसके बिना अध्ययन तेजस्वी नहीं हो सकता। कर्मातिशेशेण यानी काम करके बचे हुए समय में वेदाध्ययन करना श्रुति का विधान है।
9_ शरीर को तीन घंटे उद्योग में लगाने और गृहकृत्य करने के बाद व्यायाम करने की जरूरत नहीं है।
10_ कताई राष्ट्रीय धर्म मानकर हमको रोज करनी ही है। उसके लिए अलग से आधा घंटा रखना चाहिए। इसके लिए तकली सबसे उपयुक्त साधन है।
11_ कपड़े में हमें केवल खादी ही उपयोग करना चाहिए। और चीजें जहां तक हो स्वदेशी ही लेना अच्छा है।
12_ सेवा के सिवा और किसी काम के लिए रात में जागना नहीं चाहिए। बीमार आदमी की सेवा इसमें अपवाद है। ज्ञान प्राप्ति के लिए भी रात्रि जागरण निषिद्ध है। नींद के लिए ढाई पहर यानी साढ़े सात घंटे तो होना ही चाहिए।
13_ रात को भोजन नहीं लेना चाहिए।आरोग्य,व्यवस्था,और अहिंसा तीनों दृष्टियों से इस नियम की आवश्यकता है।
14_प्रचलित विषयों में सम्पूर्ण जागृति रखकर वातावरण का निश्चय रखना चाहिए। कौटुंबिक पाठशाला का यही ध्येय होना चाहिए।

