विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन संकल्प का 288वां दिन

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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शिक्षकों का काम शिक्षण के द्वारा समूचे समाज की रचना बदलने का है।शिक्षक शांतिमय क्रांति के अग्रदूत हैं। शिक्षकों का अनुराग और वात्सल्य विद्यार्थियों से होना चाहिए। उनके लिए तो शिष्यदेवो भव। शिष्य ही उनके देव हैं।

शिक्षक गांव के फ्रेंड फिलोस्फर गाइड बनें _ विनोबा। वेद में शिक्षक का वर्णन आया है कि _ पथिकृद विचक्षण:। पहले रास्ता ढूंढने और बनाने का काम शिक्षकों को करना है। जो विचक्षण होगा वही पथिकृद बन सकेगा। विचक्षण यानी चारो ओर देखने वाला, विजनवाला। शिक्षकों का काम शिक्षण के द्वारा समूचे समाज की रचना बदलने का है।शिक्षक शांतिमय क्रांति के अग्रदूत हैं।

शिक्षकों का अनुराग और वात्सल्य विद्यार्थियों से होना चाहिए। उनके लिए तो शिष्यदेवो भव। शिष्य ही उनके देव हैं। उनकी भक्ति पूर्वक एकनिष्ठा से सेवा करना ही शिक्षकों का कर्तव्य है। विद्यार्थी गुरु_सेवा और शिक्षकों के लिए विद्यार्थी_सेवा दोनों का परस्पर एकमात्र ध्येय होना चाहिए। और दोनों मिलकर परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं।

ऐसी अनुभूति आनी चाहिए। शिक्षकों का दूसरा गुण नित्य_ निरंतर अध्ययन_ शील होना चाहिए। उनमें ज्ञान की वृद्धि सतत होती चली जाए। किसी भी विचार को अपना विरोधी या अनुकूल न मानकर उसका अध्ययन करना चाहिए। शिक्षकों का विश्वास ज्ञान में होना चाहिए। शंकराचार्य से पूंछा गया कि आप जिनको ज्ञान देते हैं,वे यदि आपका उपदेश नहीं समझेंगे तो आप क्या करेंगे? मैं उसे समझाता ही रहूंगा क्योंकि मेरा अस्त्र समझाना ही है। मैं कभी हारनेवाला नहीं । शंकराचार्य का विश्वास ज्ञान प्रसार पर रहा। वैसा ही शिक्षक का भी ज्ञान शक्ति पर विश्वास होना चाहिए।

शिक्षक को ज्ञान_समुद्र होना है। उसको ज्ञान की उपासना करनी है। अगर शिक्षक में वात्सल्य है और ज्ञान नहीं तो उत्तम माता बन सकते हैं, गुरु नहीं। यदि प्रेम_ वात्सल्य नहीं है परन्तु तटस्थता है और ज्ञान की साधना चलती है तो तत्वज्ञानी,विचारक या निवृत्ति निष्ठ बन सकते हैं। लेकिन गुरु नहीं। गुरु के लिए निरंतर चिंतनशीलता, ज्ञान_ वृद्धि के साथ साथ अपने शिष्यों के लिए अत्यंत वात्सल्य और प्रेम भी होना चाहिए। बाबा कहा करते थे कि मेरी पहली श्रद्धा भगवान पर दूसरी शिक्षकों पर और तीसरी जनता पर है। भगवान ने हर एक व्यक्ति में रहम दे रखा है इसलिए वह किसी का दुख नहीं देख सकता, यह भगवान की मनुष्य को बहुत बड़ी देन है। शिक्षकों का आधार ज्ञान है, इसलिए बाबा को श्रद्धा है। उनकी सत्ता ज्ञान_सत्ता है। समझाना, बुझाना, रिझाना सब ज्ञान के द्वारा ही संभव है। शिक्षक गांव के फ्रेंड फिलोस्फर गाइड (मित्र, ज्ञानदाता और मार्गदर्शक) बनें। शिक्षक जो भी ज्ञान लोगों को देगा वह भगवान का दिया हुआ है,हमारा कुछ नहीं समझकर निरहंकारिता से सेवा करेंगे तो उन्हें अंतर्समाधान होगा।

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गुरु और शिष्य मिलकर चिंतन मनन और सह आचरण करते हैं, उसमें से दुनिया को अनुभवयुक्त ज्ञान मिलता है। जहां विचार मंथन और प्रयोग दोनों एक हो जाते हैं, घुलमिल जाते हैं उसे ही नई तालीम कहते हैं। जहां कुछ विचार मंथन चलता है,परन्तु उसे आचरण का आधार नहीं मिलता है वहां पर पुरानी तालीम चलती है। आचरण है,प्रयोग है, परन्तु विचार मंथन ,चर्चा आदि नहीं है,तो वह कर्मयोग है। जो आज असंख्य किसान सच्चाई से कर रहे हैं। तीसरी बात शिक्षक तटस्थ हों।तटस्थ_ वृत्ति के बिना सृष्टि_रहस्य पाना शक्य नहीं। चित्रकार को अपना चित्र दूर से जाकर देखना पड़ता है। शिक्षकों को दलीय राजनीति से दूर रहना चाहिए। इन दिनों विद्यार्थी पर तो राजनीति का बड़ा आक्रमण है ही और अगर शिक्षक भी उसमें रंग गए। तब तो समझना चाहिए कि गंगामैया समुद्र की शरण गयी लेकिन समुद्र ने उनका स्वीकार नहीं किया,तो जो हालत गंगा की होगी, वही विद्या की भी होगी। विद्या आचार्यों के शरण गयीं लेकिन उन्होंने उसका स्वीकार नहीं किया। **। बाबा कहते थे कि शिक्षकों की बड़ी आध्यात्मिक हैसियत है।इसलिए उन्हें राजनीति से मुक्त रहना चाहिए। न्यायाधीश हो या डॉक्टर हो उन पर किसी पक्ष की सत्ता नहीं चलती,वैसे ही शिक्षक का होना चाहिए। शिक्षक अगर राजनीति में पड़े हैं तो मान लीजिए कि वे कर्ता नहीं कर्म हैं। उनके कर्ता कोई और है। उनके हांथ में कर्तृत्व नहीं। शिक्षक क्या है उसे अपनी हैसियत पहचाननी चाहिए।

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शिक्षक होने के साथ साथ दूसरा भी कुछ होने की स्थिति बनी रहेगी तो शिक्षक के काम को न्याय नहीं मिलेगा। वह सबसे पहले शिक्षक है। उनका काम सबसे श्रेष्ठ है।उनके हांथ में देश की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति बच्चे सौंपे जाते हैं। उन्हें जो कुछ संस्कार,विद्या, मार्गदर्शन सब शिक्षकों के जरिए ही मिलेगा। उन्हें शिक्षक धर्म के अनुसार कुछ चीजें छोड़नी ही चाहिए। बाबा कहते थे कि आज शिक्षक की हैसियत अच्छी नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ाने के विषय, उसके पढ़ाने के घंटे, अभ्यासक्रम सब ऊपर से ही तय होता है। शिक्षक वेतन के अलावा और कोई संबंध ज्यादा नहीं रखता। सरकार जनता का पैसा जनता के काम में खर्च करती है उसे तो शिक्षा के विषयों पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए।

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आजकल उन्हें भी नौकर की पदवी प्राप्त हो गई है। उसमें न उनकी बुद्धि का विकास होता है और न राष्ट्र ही उससे बनता है। शिक्षा के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी क्रांति होनी है। जब शिक्षक समझेगा कि भारत की समाज_रचना बदलना हमारा कर्तव्य है। शिक्षक राजनीति का अध्ययन करे लेकिन उसे चिंता जयजगत की होनी चाहिए। सारी दुनिया का भला करने की भी एक राजनीति ही है। उसका चिंतन मनन हमारे शिक्षकों को करना चाहिए।