परमार्थ निकेतन में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानगंगा प्रवाहित

अर्थ साइंस वीक के अवसर पर प्रकृति के प्रति समर्पण, संरक्षण और संवर्द्धन का संकल्प
नेशनल एक्सप्रेस ब्यूरो, ऋषिकेेश। परमार्थ निकेतन के दिव्य प्रांगण में कथाव्यास श्री कनकेश्वरी देवी जी के श्रीमुख से प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा की ज्ञानगंगा में आज परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी का पावन सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारी कथाओं, उपनिषदों और वेदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। हर कण-कण में, हर प्राण में, हर वस्तु और प्रकृति की प्रत्येक रचना में दिव्यता निहित है। ईश्वर केवल किसी मंदिर, मूर्ति या पूजा स्थल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि उनका ही स्वरूप है।
उपनिषदों में कहा गया है “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” अर्थात यह सारा जगत ब्रह्म ही है। प्रत्येक वृक्ष, नदी, पहाड़, पशु और मनुष्य ईश्वर की अभिव्यक्ति हैं, सभी ईश्वर के खूबसूरत हस्ताक्षर हैं। कहानियों और पुराणों में भी बार-बार यह दृष्टांत मिलता है कि ईश्वर का अस्तित्व हर रूप में है, चाहे वह हमारी दृष्टि से दिखाई दे या अदृश्य हो। सत्य तो यह है कि हर कण में ईश्वर व्याप्त हैं, और इस चेतना से हमारा जीवन संतुलित, पवित्र और जागृत बनता है।
हर वर्ष 12 से 18 अक्टूबर के बीच अर्थ साइंस वीक मनाया जाता है। जो हमारे जीवन में भू-विज्ञान, ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझने का एक दिव्य अवसर है। जो हमें हमारे पर्यावरण, समाज और व्यक्तिगत जीवन पर ऊर्जा उपयोग के प्रभाव को समझने और सतत विकल्प अपनाने की प्रेरणा देता है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति प्रकृति केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि माता है। भगवद्गीता में कहा गया है कि हमारा जीवन केवल हमारे कल्याण के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि और जीव-जंतुओं व प्राणियों के कल्याण के लिए है। जैसे अर्जुन को अपने कर्तव्य का बोध हुआ और उन्होंने जीवन के हर निर्णय में धर्म और सततता का पालन किया, वैसे ही हमें भी आज अपनी ऊर्जा और संसाधनों के चुनाव में सोच-समझकर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
आज जब हम अपने घरों, व्यवसायों और परिवहन के लिए ऊर्जा के स्रोत चुनते हैं, तो यह केवल तकनीकी निर्णय नहीं, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी बन गई है। अगर हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संरक्षण नहीं करेंगे, तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जीवन संभव नहीं होगा। सनातन संस्कृति हमें स्मरण कराती है कि जल, जंगल, जमीन और वायुमंडल हमारी वास्तविक संपत्ति हैं, और उनका संरक्षण करना हर व्यक्ति का धर्म है।
अर्थ साइंस वीक पूरे विश्व के लिये एक अवसर है कि हम समझें कि भू-विज्ञान और ऊर्जा संसाधन केवल वैज्ञानिक तथ्य नहीं हैं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का अंग हैं। भगवद्गीता में कहा गया है कि कर्म बिना आसक्ति के करना चाहिए, वैसे ही हमें ऊर्जा का उपयोग सतत और जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए। हमें प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण विकल्पों का उपयोग करना होगा जो हमें सतत और समृद्ध जीवन की ओर ले जाते हैं।
अर्थ साइंस वीक एक पुकार है, जागो, समझो और धरती की रक्षा में सहभागी बनो। यह केवल एक सप्ताह नहीं, बल्कि धरती के प्रति हमारे संकल्प और जिम्मेदारी का पर्व है। हमारी छोटी-छोटी कोशिशें ही सृष्टि के लिए बड़ा परिवर्तन बनकर उभर सकती हैं। यही संदेश अर्थ साइंस वीक 2025 और यह दिव्य श्रीमद् भागवत कथा हमें देती हैं।
इस अवसर पर म म स्वामी ललितानन्द गिरि जी, मंहत भरत माता मन्दिर, हरिद्वार, योगगुरू स्वामी साधनानन्द जी, स्वामी महादेवानन्द जी, झालावाड़ा गुजरात आश्रम, हरिद्वार, म म स्वामी विवेकानन्दन जी, डा दीपकाचार्य जी और अन्य पूज्य संतों का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ।
कथा आयोजक श्रीमती करूणाबेन प्रागजी भाई पटेल, श्री प्रागजी भाई नारण भाई पटेल, विशाल, मितल, श्रेया, जैमिन, धरती, ईशान, निष्ठा, पिनाक और अहमदाबाद गुजरात से पधारे मित्र व परिवार जन मां गंगा जी गोद में बैठकर अध्यात्म ज्ञान गंगा का रसपान कर रहे हैं।