फिरोजाबाद के कांच उद्योग में रोज फुंक रही लाखों की गैस, दीपावली अवकाश बना नुकसान का बड़ा कारण

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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दीपावली की रौनक इस बार सुहाग नगरी फिरोजाबाद के कांच उद्योग के लिए भारी पड़ रही है।

नेशनल एक्सप्रेस, फ़िरोज़ाबाद। दीपावली की रौनक इस बार सुहाग नगरी फिरोजाबाद के कांच उद्योग के लिए भारी पड़ रही है। त्योहार के अवसर पर घोषित अवकाश और श्रमिकों के गांव लौटने से उत्पादन ठप पड़ गया है, लेकिन उद्योगपतियों की भट्टियाँ अब भी जल रही हैं। वजह है — उन्हें ठंडा नहीं किया जा सकता। परिणामस्वरूप हर दिन लाखों रुपये की नेचुरल गैस बिना किसी उत्पादन के ही फुंक रही है।

शहर के सैकड़ों कांच और चूड़ी कारखानों में दीपावली से पहले ही कामकाज रोक दिया गया था। श्रमिक अपने घर लौट गए और अधिकांश फैक्ट्रियों में उत्पादन पूरी तरह बंद हो गया। परंतु भट्टियों में तापमान बनाए रखने के लिए उद्योगपतियों को लगातार गैस जलानी पड़ रही है।

उद्योगपतियों की मजबूरी

एक फैक्ट्री संचालक ने बताया, “यदि भट्ठी को ठंडा कर दिया जाए तो दोबारा तापमान हासिल करने में कई दिन लग जाते हैं और लाखों रुपये का अतिरिक्त खर्च आता है। इसलिए भले ही उत्पादन बंद हो, लेकिन गैस जलाना मजबूरी बन जाती है।”

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जानकारों के अनुसार, फिरोजाबाद में प्रतिदिन लाखों रुपये की गैस बेकार फुंक रही है। गैस के लगातार दाम बढ़ने से यह स्थिति उद्योग के लिए और भी नुकसानदेह बन गई है।

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ऊर्जा की बड़ी बर्बादी

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यह स्थिति न केवल आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी चिंताजनक है। ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी मात्रा में गैस का व्यर्थ जलना कार्बन उत्सर्जन को भी बढ़ा रहा है।

त्योहार के बाद भी नहीं सुधरेगी स्थिति

उद्योग से जुड़े लोगों का अनुमान है कि दीपावली के बाद भी उत्पादन तुरंत शुरू नहीं हो सकेगा। श्रमिकों की वापसी में समय लगेगा, जिससे नुकसान का आंकड़ा और बढ़ सकता है।

प्रशासन से मदद की अपील

उद्योगपतियों ने प्रशासन और गैस आपूर्ति एजेंसियों से सहयोग की मांग की है। उनका कहना है कि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए तकनीकी समाधान और ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

कांच की चमक के लिए पहचाने जाने वाले फिरोजाबाद का यह उद्योग लंबे समय से ऊर्जा लागत की मार झेल रहा है। दीपावली जैसे बड़े त्योहारों पर उत्पादन ठप होने से न केवल व्यापार प्रभावित होता है, बल्कि हज़ारों श्रमिकों की रोज़ी-रोटी पर भी असर पड़ता है।

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