विनोबा विचार प्रवाह! एकवर्षीय मौन साधना का 289 वां दिन

नेशनल एक्सप्रेस डिजिटल डेस्क
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आज तो अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस भी है। तो पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिमरई के प्रधानाध्यापक श्री कौशल कुमार के सौजन्य से वहां की छात्राएं बालिकाओं के जीवन पर नाटक प्रस्तुत करेंगी।

आज जयप्रकाश नारायण जी की जयंती है। आज के ही दिन वर्ष 1996 को एकादश संकल्पों के साथ विनोबा सेवा आश्रम से पृथक श्रम स्वाध्याय मंदिर रझोआ की शुरुआत शून्य से की। वर्ष 2011 में आज के ही दिन जयप्रभा कुटीर का भूमिपूजन हुआ था। आज तो अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस भी है। तो पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिमरई के प्रधानाध्यापक श्री कौशल कुमार के सौजन्य से वहां की छात्राएं बालिकाओं के जीवन पर नाटक प्रस्तुत करेंगी।

आज ही जे पी सेवा ट्रस्ट छीतेपुर में वृद्धों के लिए पूज्य बाबा विनोबा द्वारा बताई गईं और माननीय राज्यपाल उत्तरप्रदेश महोदया श्रीमती आनंदीबेन पटेल द्वारा गांधी जयंती 2022 को छीतेपुर भ्रमण के दौरान उदघोषित सेवाधाम में पांच सेवाओं (बालक, वृद्ध, विधवा (महिला) विकलांग, (बेरोजगार) और बीमार )में से बालकों के लिए बाल अखाड़ा, विन्या क्रीड़ांगन, बाल संस्कार केंद्र, बाल शिक्षण केंद्र पहले से शुरू है आज जयप्रभा कुटीर के 12 वें स्थापना दिवस पर परिसर में गांव के सम्मानित वृद्धों के लिए सुंदर दिवस देखभाल केंद्र ( डे केयर सेंटर) जिसमें पलंग, बिस्तर, और खेलने ,मनोरंजन की सुविधा जुटाई गई है उसमें आकर अपना दिन का समय व्यतीत कर सकते हैं।

ऐसे सेवा केंद्र की शुरुआत श्री अरविंद कुमार अपर जिला मजिस्ट्रेट एवं श्री मिजाजी लाल वरिष्ठ जेल अधीक्षक श्री राजेश शर्मा जिला समाज कल्याण अधिकारी शाहजहांपुर एवं श्री बृज गोपाल शर्मा आध्यात्मिक विज्ञ के कर कमलों से पूर्वाह्न 11 बजे से एक बजे होनी है।। ***। । *। **आज का विचार। शिक्षक का कार्य मेघ का नहीं बल्कि माली का है_ विनोबा ***। बाबा ने एक बार बताया कि अत्यंत आप्ततम कौन है? जिसकी सलाह मौके पर लेनी चाहिए? तो उत्तर मिला कि तटस्थ गुरुआ की सलाह लेनी चाहिए। मनुष्य को जब भी रोजमर्रा की जिंदगी में सलाह की जरूरत पड़ती है।तब माता पिता, भाई, पति, पत्नी, मित्र की सलाह लेता है परन्तु शिक्षकों की सलाह कभी नहीं लेता। बाबा कहते थे तो हमने एक अच्छे सलाहकार को खो दिया। हमें प्रेम करनेवाला, ज्ञानी और तटस्थ भी हो वही सच्चा सलाहकार हो सकता है। ऐसा व्यक्ति शिक्षक ही हो सकता है। शिक्षक तीन गुण से युक्त होना चाहिए_ प्रेम, ज्ञान और तटस्थता। शास्त्रों में कहा गया है गुरुमुखि नादं, गुरुमुखि वेदं । नाद और वेद का अपना एक महत्व है। फिर भी जब वे गुरु के मुख से सुने जाते हैं तो उनका महत्व बढ़ जाता है।ध्यान से जो तालीम मिले वह नाद और शास्त्रों से जो ज्ञान मिले उसे वेद कहा जाता है। आजकल के शिक्षक का प्रमुख कार्य हाजिरी भरना है।

उसमें भी कोई छात्र आखिर क्यों अनुपस्थित है? इसका कारण जानने की भी कोशिश नहीं होती। बाबा कहते थे कि आज का शिक्षक एक जमात को पढ़ाते हैं विद्यार्थियों से सीधा, नजदीक का संबंध नहीं आता। शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर पुराने मूल्यों के दोष निकाल फेंके और गुण रखें।इस विवेक पद्धति का नाम ही शिक्षा है। सार असार_ विवेक ही शिक्षण है।विवेकपूर्ण समाज_ संशोधन के लिए ही गुरु_शिष्य का समाज बनता है। बाबा विद्यार्थियों की शिकायतें सुनकर कहते थे _ शिष्यापराधे गुरोरदंड_ यदि शिष्य से कोई अपराध हुआ है तो गुरु को शासन हो। आज की शिक्षा प्रपजलेस है।सीखकर क्या करना है उनको मालूम ही नहीं। विद्यार्थियों से शिक्षक का संपर्क नहीं रहता। जो सलाहकार हो सकता। उससे आपस में वर्ग के बाहर भेंट ही नहीं। वास्तव में इसका उल्टा होना चाहिए। अगर हमें सफल तालीम की योजना करनी हो तो शिक्षक वानप्रस्थी होना चाहिए । दोनों वानप्रस्थी पति पत्नी शिक्षक होंगे तो लड़कों को माता पिता मिल जाएंगे। बाबा कहते थे कि शिक्षकों का सही मायने में आश्रम वानप्रस्थाश्रम ही है। सन्यासी आदर्श हो सकता है लेकिन शिक्षक नहीं हो सकता है। फिर ब्रम्हचर्याश्रम तो है ही विद्यार्थी जीवन। गृहस्थाश्रम अनुभव_ संपादन का आश्रम है।

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गृहस्थ दूसरे कर्तव्यों से बद्ध है। वहां तो माता_पिता के द्वारा अपने बच्चों को शिक्षण दिया जाता है । लेकिन इससे समाज तो नहीं बदल सकता। तालीम वानप्रस्थियों के हांथ में होगी तभी समस्या हल होगी। तालीम ऐसे लोगों से मिलनी चाहिए, जो अनुभव सम्प्रदान_ समर्थ हों और जिनकी व्यक्तिगत शुद्धि हो चुकी हो। वे ही क्रांति का झंडा उठा सकेंगे। जिस उम्र में शरीर, मन, बुद्धि, वाणी , और सारी इंद्रियां जीर्ण हो गईं हों,उस उम्र में वानप्रस्थ नहीं होना चाहिए। जब अनुभव आ चुका हो और दूसरों को देने की योग्यता आ गई है। तब वानप्रस्थ होना चाहिए। विषय कामनाएं शुद्ध हो गईं हों और शरीर मन बुद्धि आदि इंद्रियां कार्यक्षम हों,उस उम्र में वानप्रस्थ होना चाहिए। जिस महाजन ने सत्यनिष्ठ होकर करोड़ों का व्यापार चलाया,वही बच्चों को सिखा सकेगा। हर एक के जीवन में शिक्षक बनने का मौका आता है। बाबा कहते थे कि राजनीति सिखाने का पंडित नेहरू को और वाणिज्य सिखाने का घनश्यामदास बिड़ला को मौका मिलना चाहिए। शिक्षक विद्यार्थी_ परायण,विद्यार्थी शिक्षक_ परायण, दोनों ज्ञान_ परायण और ज्ञान सेवा_ परायण, ऐसी शिक्षण की योजना होनी चाहिए। विषय वासनाग्रस्त मनुष्य शिक्षक होने का अधिकारी नहीं हो सकता। जवानो में विषयासक्त होने की जितनी तीव्र भावना होती है उतनी ही शक्ति विषय_वासना को वश में करने की भी होती है। उचित ध्येय की प्राप्ति के लिए एक मस्ती होती है। वह मस्ती प्रौढ़ों में दुर्लभ है। इस उदात्त ध्येय के लिए जवान शिक्षक संयम से रहेंगे तो उनके काम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। बाबा का मानना था कि एक माता पिता जितने बच्चों को जन्म देकर उनकी सेवा स्रश्रुआ कर सकता है।

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उतने ही विद्यार्थी शिक्षक को पढ़ाना चाहिए। 50 विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले को शिक्षक नहीं व्याख्याता कह सकते हैं। मेघ का बरसना और बात है और पेड़ों को पानी देकर उन्हें बढ़ाना और बात है।यह माली का काम है। माली और बारिश का काम अलग अलग है। माली देखेगा कि किस पेड़ को कितना पानी चाहिए।पानी व्यर्थ जाए,यह माली सहन नहीं करेगा। आजकल इंसान का दिमाग ठंडा और दिल गरम होता है।पुरानी पीढ़ी लोगों के दिल और दिमाग दोनों ठंडे होते हैं और नई पीढ़ी के दोनों गर्म। इसलिए न इनका मामला ठीक रहता है और न उनका ही रहता है। दोनों के बीच बेहद फासला है। इसलिए होश और जोश दोनों चाहिए। नयी पीढी को अपना दिमाग ठंडा रखना मुश्किल मालूम होता है। यह काम शिक्षकों का है कि वे पुरानी पीढ़ी का दिमाग और नई पीढ़ी का दिल दोनों को जोड़ दें। दुनिया को ऐसे उस्तादों की जरूरत है। जो पुरानी पीढ़ी के तजुर्बे नई पीढ़ी के पास पहुंचा दें और नई पीढ़ी का जोश कायम रखें।युवकों में जोश होता ही है उनके पास होश पहुंचा दें। यह काम शिक्षक जैसे सेतु का ही है।

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