पेपर मिलों का जहरीला धुआं बना 'मौत का साया', प्रदूषण विभाग की अनदेखी ने बढ़ाई मुसीबत

जनपद मुजफ्फरनगर में चल रही पेपर मिलों द्वारा रिफ्यूज डेराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) के अवैध और अनियमित उपयोग ने अब पर्यावरण के साथ-साथ आमजन के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है।
नेशनल एक्सप्रेस ब्यूरो, मुजफ्फरनगर (कोसर चौधरी)। जनपद मुजफ्फरनगर में चल रही पेपर मिलों द्वारा रिफ्यूज डेराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) के अवैध और अनियमित उपयोग ने अब पर्यावरण के साथ-साथ आमजन के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है। ग्रामीणों नेप्रशासन से बार-बार शिकायत की लेकिन कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं की गई। प्रदूषण विभाग से ग्रामीण शिकायत करते हैं, तो विभाग यह कहकर पल्ला झाड़ देता है कि मिलों को आरडीएफ जलाने की अनुमति है।
बता दें कि मुजफ्फरनगर में सैकड़ों की संख्या में पेपर मिल समेत अनेक मिले हैं, जिनकी चिमनियों से रोजाना जहरीला धुंआ निकलता है। यह धुआं इतना जहरीला है कि इसने आसपास के गांवों के लोगों की जिन्दगी को नरक बना दिया है। हाल ही में मुजफ्फरनगर की पेपर मिलों की चिमनियों से निकलने वाले धुंए की एक वीडियो किसी ग्रामीण ने वायरल की है। वायरल वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि एक पेपर मिल की चिमनी से अत्यधिक मात्रा में काला धुआं निकल रहा है, जो हवा में दूर तक फैल रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार का धुआं डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे विषैले तत्व छोड़ता है, जो अस्थमा, त्वचा रोग, आंखों में जलन और कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे सकता है। वीडियो का तकनीकी विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हुआ कि उसमें दिखने वाला धुआं अत्यधिक घना है। औसत ब्राइटनेस का स्तर मात्र 111 और कॉन्ट्रास्ट 88 रहा, जो प्रदर्शित करता है कि दृश्य में धुंध और जहरीले कणों की भरमार थी। यह स्थिति वायु प्रदूषण के उच्च स्तर की पुष्टि करती है।
आरडीएफ वह ईंधन है जो मिश्रित कचरे जैसे प्लास्टिक, पन्नी, रबर आदि से तैयार होता है।
यह मुख्य रूप से वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट या कैप्टिव पावर प्लांट में नियंत्रित तरीके से जलाया जाना चाहिए। इसके इस्तेमाल के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पूर्व अनुमति, उन्नत वायु शोधन संयंत्र (एपीसीएस), और ठोस कचरे के सुरक्षित निपटान की व्यवस्था अनिवार्य है। मुजफ्फरनगर की कई मिलें इन शर्तों का पालन नहीं कर रही हैं। बिना फिल्टर और स्क्रबर के चल रहे बॉयलरों से जहरीली गैसें जैसे डाइऑक्सिन, फ्यूरान, सल्फर डाइऑक्साइड और बारीक धूल वातावरण में घुल रही हैं।
प्रदूषण विभाग द्वारा बताया गया कि मुजफ्फरनगर में 19 उद्योगों के पास आरडीएफ, प्लास्टिक अपशिष्ट आदि का प्रयोग ईंधन के रूप में किये जाने के लिए राज्यबोर्ड से सहमति है।
इन उद्योगों में अग्रवाल डुप्लेक्स बोर्ड मिल लि., शाकुम्भरी पल्प एण्ड पेपर मिल लि., बिन्दल पेपर मिल, टिहरी पल्प एण्ड पेपर लि., श्री भागेश्वरी पेपर्स लि., श्री वीर बालाजी पेपर लि., क्रिश्नांचल पल्प एण्ड पेपर प्रा. लि., सिद्धेश्वरी इंडीस्ट्रीज प्रा. लि., केके डुप्लेक्स पेपर मिल्स प्रा. लि., महालक्ष्मी क्राफ्ट एण्ड टिशूज, ओरियन्ट बोर्ड पेपर मिल प्रा. लि., सिल्वर टोन पल्प पेपर लि., दिशा इंडस्ट्रीज प्रा. लि., गर्ग डुप्लेक्स एण्ड पेपर मिल्स प्रा. लि., क्रिस्टल बालाजी इंडस्ट्रीज प्रा. लि., अल्पना पेपर मिल प्रा. लि., मीनू पेपर मिल, अरिस्टो पेपर मिल शामिल हैं।
हाल ही में आयोजित किसान दिवस में भी ग्रामीणों ने यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। शिकायत की गई थी कि जिले की कुछ पेपर मिलों को आरडीएफ इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है, लेकिन वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की घोर अनदेखी कर रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जब इस बारे में प्रदूषण विभाग से शिकायत की जाती है, तो अधिकारी सिर्फ यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि मिलों को अनुमति प्राप्त है। वे यह नहीं जांचते कि जिन शर्तों पर यह अनुमति दी गई थी, उनका पालन भी हो रहा है या नहीं। ग्रामीणों का आरोप था कि पेपर मिलों के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोग लगातार सांस की तकलीफ, सिरदर्द और आंखों में जलन की शिकायत कर रहे हैं। स्थानीय निवासी अशोक कुमार ने बताया कि मिल से निकलने वाला धुआं रात-दिन फैलता है, जिससे बच्चों और बुजुर्गों का स्वास्थ्य सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है।
प्रदूषण का हाल: दिन में भी छाई रहती है धुंध
भोपा रोड, मेरठ रोड़, जौली रोड़, जानसठ रोड़ स्थित मिलों के आसपास प्रदूषण का यह हाल है कि यदि कोई बाहरी व्यक्ति इन मिलों के आसपास पहुंच जाये, तो बदबू और सांस लेने में उसे बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इन मिलों के आसपास दिन में भी आसमान धुंधला दिखाई देता है और एक धुंध का सा अहसास होता है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मिलें जनपद का विकास कर रही है या फिर विनाश। हालांकि प्रदूषण विभाग ने इन मिलों को एनओसी दी हुई है, परन्तु जिन शर्तों पर एनओसी दी गयी है, उन शर्तों का क्या हो रहा है, इस बात से प्रदूषण विभाग को कोई लेना-देना नहीं है। यदि ग्रामीणों या जागरूक लोगों द्वारा शिकायत भी की जाती है, तो उसमें भी सिर्फ खानापूर्ति ही होती है।
मिलों के आसपास के गांवों में रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि इन मिलों ने उनका जीवन नर्क बना दिया है। इन मिलों को नियंत्रित किया जाना जरूरी है, यदि इन पर नियंत्रण नहीं लगा, तो ज्यादातर ग्रामीण पलायन करने के लिए मजबूर हो जायेंगे। उन्होंने जिला प्रशासन से मांग की है कि आरडीएफ का उपयोग कर रही सभी मिलों का तत्काल निरीक्षण किया जाए और जिन शर्तों के तहत आरडीएफ के प्रयोग की अनुमति दी गई है, उनकी अनुपालना की पुष्टि की जाए। प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों (एपीसीएस) की कार्यशीलता सुनिश्चित की जाए। अन्य राज्यों से आने वाले मिश्रित कचरे के परिवहन पर नियंत्रण लगाया जाए।